Bookstruck

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जय करुणाघन निजजनजीवन। अनसूयानन्‍दन पाहि जनार्दन।।ध्रु।।

निज-अपराधे उफराटी दृष्टी। होऊनि पोटी भय धरू पावन।।१।।
जय करुणाघन .....।।

तू करुणाकर कधी आम्हांवर। रुसशी (रुससी) न किंकर-वरद-कृपाघन।।२।।
जय करुणाघन .....।।

वारी अपराध तू मायबाप। तव मनी कोप लेश न वामन।।३।।
जय करुणाघन .....।।

बालकापराधा गणे (गणीं) जरी माता। तरी कोण त्राता देईल जीवन।।४।।
जय करुणाघन .....।।

प्रार्थी वासुदेव पदी ठेवी भाव। पदी देवो ठाव देव अत्रिनन्‍दन।।५।।
जय करुणाघन .....।।

जय करुणाघन निजजनजीवन। अनसूयानन्‍दन पाहि जनार्दन।।ध्रु।।
जय करुणाघन ।।जय करुणाघन ।।जय करुणाघन ।।
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