Bookstruck

कैलकुलस का आधार

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter List

नकरात्मक संख्याओं को ना अपना पाने के कारण यूरोप के गणितज्ञ काई साल तक पीछे बने रहे |ग़्ट्टीड विल्ल्हेल्म लेइब्निज़ वो पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने 17 सदी में शून्य और नकरात्मक संख्याओं का इस्तेमाल किया कैलकुलस के विकास में |कैलकुलस का उपयोग परिवर्तन की दरें मापने के लिए होता है इसलिए विज्ञानं के भी सभी क्षेत्रों में इसको मान्यता प्राप्त है |

लेकिन भारतीय गणितग्य भास्कर ने लेइब्निज़ की सारी खोजें 500 साल पहले ही बता दी थी |भास्कर ने बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति के क्षेत्रों में भी बहुत बड़ा योगदान किया था |उसने “डोईफन्तिने” एकुँशुन के समाधान के लिए भी कई हल दिए जो यूरोप में कई सदियों तक भी नहीं हो पाया था |माधव संगमग्राम द्वारा 1300 में शुरू किया गया केरेला स्कूल ऑफ़ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथमेटिक्स और उन्होनें गणित में कई नयी चीज़ों की खोज की जैसे गणितीय प्रेरण और कैलकुलस के कई अन्य हल |हांलाकि केरेला के स्कूल में कैलकुलस के कोई सही नियम नहीं लिखे गए थे लेकिन आगे चलकर यूरोप में विकसित होने वाली कई खोजों का यहाँ पहले से ही ज़िक्र हो गया था |

भारत में शून्य को दिए गए महत्व से भारतीय सभ्यता को एक उछाल मिला और इससे ये भी पता चलता है की ये सभ्यता उस समय कितनी विकसित थी जबकि यूरोपी सभ्यता अंधेरों में खोयी हुई थी |हांलाकि लोग इस बात को मान्यता नहीं देते हैं फिर भी भारत के पास गणित का प्राचीन इतिहास है जिस कारण वह आज भी विश्व भर के गणित को अपना योगदान दे पा रहा है |


« PreviousChapter List