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क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत???

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१) आज रह-रह कर एक सवाल  आ रहा है, हर पल जिसका जबाब आ रहा है क्यों रो रही है इन्सानियत ?, क्यों खो रही है इन्सानियत,?क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत? क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत???

          २)हर तरफ़ हाहाकार छाई है, अंहकार ने मचाई तबाही है ,सच की न कोई सुनवाई है एक चुपी सी छाई है इसमें इन्सानियत कहा समाई है यह सब एहसास कर मन में एक सवाल समाया है क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत ? क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत???

३)अब रिश्तों में वह प्यार नही अपनों में भी ऐतवार  नहीं अब बडो का वह आदर सम्मान नही छोटों से भी प्यार नहीं किसी के सुख दुख का भी एहसास नहीं ,यह सब देख एहसास हो रहा है क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत???? क्या ख़त्म हो रही है इन्सानियत????

           ४)ओ  इन्सानों अब तो कुछ होश कर डालो यह एहसास खुद को दिलालो इन्सान ख़ुदा का तोहफा है फिर तूने क्यों इन्सानियत क्यों  खुद को इन्सानियत से रोका है?? ओ  इन्सानों  बचालो तुम संभालो तुम इन्सानियत को , तोड़ नफरत की दीवारों को प्यार का  एहसास खुद को दिलालो ताकि न  खत्म हो इन्सानियत ,जी जान से कोशिश कर डालो ताकि न खत्म हो इन्सानियत  न खत्म हो इन्सानियत।ओ  इन्सानों प्यार के दीप मन में जगा कर न खत्म करो इन्सानियत न खत्म करो इन्सानियत।

आज  दुनिया में सिर्फ आगे बढ़ने की होड़ में हर इन्सान मतलबी होता जा रहा है किसी को भी किसी के जज़्बात प्यार से कोई लेना-देना नहीं है हर कोई आज यह चाहता है कि सफलता सिर्फ उसे ही मिले भले इसके लिए किसी दूसरे का चाहे जो भी नुकसान हो पर कोई भी इस बात की परवाह किए बिना अपना मतलब निकालते हैं। आज तो ऐसा समय आ गया है कि रिश्तों में  भी मतलब शामिल हो गया है चाहे कोई भी रिश्ता हो यहा तक की बच्चे भी मां बाप से मतलब का रिश्ता रखने लगे हैं अगर उनकी जरूरत पूरी होती है तो आपको मां बाप समझा जाता है नहीं तो कोई सम्मान नहीं किया जाता।पर ऐसा होना नहीं चाहिए हमें अपनी संस्कृति को याद रखना चाहिए हमारे देश में तो दुसरो की खुशी के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया जाता था तो क्या हम इन्सानियत को भी नहीं निभा सकते । आज  हम सब मिलकर यह संकल्प करते हैं कि जो हो जाए हम इन्सानियत को कभी भी न भूलेंगे और समाज में प्यार और अमन-शांति से रहेगे। धन्यवाद 

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