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जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्चते

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जो मनुष्य है संस्कारवान,
वह है इस जग का सबसे बड़ा धनवान।
संस्कार हैं संस्कृति के आधार,
संस्कार ही हैं प्रगति के प्राण।
सुसंस्कृत बनना ही जीवन का उद्देश्य।
संस्कारों से ही होता चरित्र निर्माण,
संस्कारों से ही बनते लोग महान।
संस्कार ही हैं मनुष्य की सच्ची संपदा,
संस्कारों से ही होता जीवन का उद्धार।
संस्कार ही हैं मनुष्यता की पहचान,
संस्कारहीन नर तो है पशु समान।
संस्कार ही वह कल्पवृक्ष हैं,
जिससे होती है हर कामना पूरी।

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