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श्लोक २१ वा

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कृते शुक्लश्चतुर्बाहुर्जटिलो वल्कलाम्बरः ।

कृष्णाजिनोपवीताक्षान् बिभ्रद्दण्डकमण्डलून्‌ ॥२१॥

कृतयुगीं श्र्वेतवर्णधर । जटिल चतुर्भुज वल्कलांबर ।

दंडकमंडल्वंकित कर । अजिन ब्रह्मसूत्र अक्षमाला हातीं ॥१६॥

ब्रह्मचर्यें दृढव्रत । ये चिन्हीं चिन्हांकित ।

परमात्मा मूर्तिमंत । भक्त यापरी यजिती ॥१७॥

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