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श्लोक ३१ वा

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इति द्वापर उर्वीश, स्तुवन्ति जगदीश्वरम् ।

नानातन्त्रविधानेन, कलावपि यथा श्रृणु ॥३१॥

यांहीं नामीं स्तुतिस्तवन । द्वापरींचे करिती जन ।;

आतां कलियुगींचें भजन । तंत्रोक्त विधान ऐक राया ॥४१॥

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