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श्लोक ३० वा

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एवंवृत्तो गुरुकुले वसेद्‍भोगविवर्जितः ।

विद्या सामाप्यते यावद्‌बिभ्रद्‌व्रतमखण्डितम् ॥३०॥

सांडोनि सकळ भोगांतें । गुरुकुळीं राहोनि तेथें ।

गुरुसेवेचेनि व्रतें । प्रिय सर्वांतें तो जाहला ॥२४॥

एवं गुरुसेवायुक्त । धरोनियां अखंड व्रत ।

पावला वेदशास्त्र । पढणें समाप्त पैं जाहलें ॥२५॥

एवं विद्या जाहलिया समाप्त । उपकुर्वाण नैष्ठिक व्रत ।

स्वयें सांगावया अनंत । पुढिल श्लोकार्थ सांगतु ॥२६॥

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