कुछ दर्द हमारे हों ज्यादा.…...
कुछ दर्द हमारे हों ज्यादा,
कुछ अश्क तुम्हारे खाली हों,
महफ़िल में हम तुम हँसते हो,
हर शख्स की आँख सवाली हो,
तुमसे मिलने की ज़िद पर जब,
अपनी हर चाह लगे हल्की,
जो लम्हा बिन तेरे बीते,
हर साँस लगे भारी गलती,
जिस सुबह तुम्हारा हो आना,
उस रात हमे हो नींद नही,
पहले का तो कुछ पता नही,
पर इस बार नही तो ईद नही,
दुनिया की किन रस्मों को,
हम दोनो के बीच ले आते हो,
हम हैं जब अभी तलक बैठे,
तुम कैसे उठकर चले जाते हो,
कहते हो की प्यार नही,
बोलो किसको समझाते हो,
सच है की अगर है प्यार नही,
फिर सुलझे लट क्यों सुलझाते हैं,
हम शहर बदलते रहते हैं,
तुम नाम बदलते रहते हो,
कोई हमसे आकर कहता है,
पहचान बदल कर रहते हैं,
जब सुनते हैं की तुम अब पहचान बदल कर रहते हो,
फिर अपने प्यार का हर लम्हा हमको भारी जुर्माना लगता है,
सब ग़ालिब,मीर,तकी का कहना,
झूठा अफसाना लगता है,
सच झूठा अफसाना लगता है,
राहुल'सहर'द्विवेदी