खोया प्रकाश
भूलती नहीं वो रात,
अंधेरी,भयानक, खौफनाक
बुझ गए दिए,
खो गया प्रकाश
कहीं दूर गुमनाम राहों मे।
बुद्धी है क्षीण,
रोते हैं नीड़
बुलाते हैं प्रकाश को ,
बार-बार, बार-बार।
जानते है अब वह नहीं आयेगा,
कभी नहीं आयेगा।
ढूंढते हैं गलतियां स्वयं में,
जिनका है कुफल ये।
सोचते है कारण,
ये होता तो ऐसा होता,
वो होता ऐसा न होता।
ढूंढते हैं शून्य में
आखिर थक हार
सोचकर कर्मफल,
करते हैं पश्चाताप,
जानी अनजानी गलतियों का।
पर कुछ नहीं हाथ
सिवाय अंधकार।
किससे कहूं हृदय वेदना
ईश्वर तो है निराकार
और किसी मानव में ,
नहीं ये सामर्थ्य
सुन सके उद्गार,
या मुझमें ही नही साहस,
उस अनकहे दर्द को कहने का।
अजीब है कश्मकश,
मन की है भ्रांति
मौत तो सरल है,
पर जीवन है क्लांती।
हर गली हर सड़क पर ढूंढती हूं
वह चेहरा।
प्रत्येक चरित्र प्रत्येक आत्मा में।
खोज है निर्मूल
बरसता है आकाश
या रोते हैं देव
अपने ही कृत्य पर
रुकती है तूलिका
बार - बार, बार - बार
सह नहीं पाता हृदय
यह चीत्कार
याद आते हैं मुक्तिबोध
अँधेरे में खोजते हुए अस्मिता
पर मैं नहीं खोज पाती वह प्रकाश
बटोरती हूँ साहस
भावी जीवन संघर्ष के लिए ।