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बेरोजगार की सोच

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कभी कभी मैं सोचता हूं कि अगर मेरा जन्म इस छोटे शहर म न होकर बड़े शहर म होता तो क्या होता मई भी अपनी मौसी के बेटों और बेटियों की कहीं पर कोई जॉब करत रहा 2-3 महीनो म एक बार कहीं घूमने जाता । मुझे भी देख कर परिवार में कोई कहता देखतो इसका बीटा कितना अच्छा हैं जॉब क्र रहा ह और तुम यहसँ बैठे हुए हो कुछ नही करते हो बीएस टाइम स खाना मिल जाये और  मोबाइल पर लगे रहो । पर मुझे देखकर ऐसा कोई नही कहता बल्कि उल्टा मुझ से ऊपर वाला लाइन खा जाता हैं। मैं सोचता हूं मैं पीछे खान रह गया सभी एग्जाम पास किये , पी .जी पास किया अब क्या करूँ। 
   मैं अपने डेल्ही वाले भैया स ज्यादा पढ़ा हुआ हूं या यु कहे तो मेरे घर म पी. जी करना वाला अकेला मैं ही हूं तो फिर क्यों बेरोजगार हु
         दूसरे तरफ ये भी सोचता हुईं की सायेद मेरे जैसे ही लाखो करोड़ो लोग बेरोजगार हैं सायेद वो भी मेरे जैसे ही सोचता होगा  और इस सोच के साथ ये व् पता चलता हैं कि देश का करोड़ो घंटे हर दिन कैसे बर्बाद हो रहा हैं जो घंटे का उपयोग देशहित म हो सकता हैं वो ही घंटे वो ही लोग आज देश पर बोझ बने हुए हैं इस में गलती किस का हैं  थोड़ी देर मे मेरा मोबाइल बजा और मै वाट्सअप का एक मैसेज पढ़कर हँसने लगा

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