गाै माता
आज एक गाय के गले में चारपाई का पुराना पाया लटकता हुआ देखा।पाया इस तरह बंधा था कि गाय अपनी गरदन नीची करे तो मुंह पर चोट लगे।वह न कुछ खा सके न पी सके।पता नहीं किसने ऐसा किया होगा?
मेरा मन गहरे विचार में डूब गया।क्या यह वही है जिसने हमें दूध पिलाया,बछड़े दिये ,खाद के लिए गोबर दिया।हमारे खेत हरे किये।हमेंखाने को अन्न दिया।पर हमने उसके त्याग और वात्सल्य का
यह फल उसे दिया!
अचानक पड़ौसन दादी रास्ते में उदास खड़ी मिली।वह परेशान लग रही थी।चार बेटों की मां
बहुत दुखी व निराश थी।मैं कुछ पूछता उससे पहले ही वह बोल पड़ी।मैं घर छोड़ कर जा रही हूं!
बड़ा झटका लगा सुन कर।सहानुभूति के लिए रुकना पड़ा ।
दादी कह रही धी कि घर छोड़ कर जाने का मन बना लिया है।
पोता व दो पोतियां हैं ,बहू है पर बुलाने पर पास भी नहीं आते। इनके दादा जी २५०००/ मासिक पेंशन लाते हैंं सब ये लेलेते हैं।समय पर रोटी तक नसीब नहीं होती ।
गाय और मां दोनों की दशा देख कर मन व्यथित हो गया।