कैसे भारत महान लिखूँ।
भारत का गुणगान लिखूँ ,
या वेदों का सार लिखूँ,
कुरान का पाक ईमान लिखूँ,
या गीत का अद्भुत ज्ञान लिखूँ।।
पाश्चात्य का भोग लिखूँ,
या पतंजली का योग लिखूँ,
साम का वो गान लिखूँ,
या नवाचार का रोग लिखूँ।।
प्रियतमा का श्रृंगार लिखूँ,
या प्रियजन की वो रार लिखूँ,
अग्नि का दाह लिखूँ,
या विधवा का रुदन कलाप लिखूँ।।
नारी पर अत्याचार लिखूँ,
या शक्ति का अवतार लिखूँ,
जननी का वो प्यार लिखूँ,
या दामिनी पर दुराचार लिखूँ।।
अजन्मी बेटी को मार लिखूँ,
या जन्मी बेटी को ताड़ लिखूँ,
खाप का वो इनाम लिखूँ,
या तुगलक का फरमान लिखूँ।
भ्रष्टों का ये राज़ लिखूँ,
या आन्गलों का वो काल लिखूँ,
लिख दूँ सब समुचित है,
या कुंठित से समाज लिखूँ।
कृषकों की व्यथा गान लिखूँ,
या मरणासन्न किसान लिखूँ,
अभयुदय उत्थान लिखूँ,
या व्यक्ति हर इंसान लिखूं।
दाने दाने को मुहाल लिखूँ,
या दाने से बीमार लिखूँ,
भुखों मरता इंसान लिखूँ,
या जहाजों पर सड़ता आनाज लिखूँ।
गोधरा की वो आग लिखूँ,
या असम का संहार लिखूँ,
सरहद पर मरता जवान लिखूँ,
या इंसानियत का अवसान लिखूँ।
शिक्षित बेरोजगार लिखूँ,
या अनपढ़ मालामाल लिखूँ,
तम्बू मै ठिठुरती खाल लिखूँ,
या शीश् महल विशाल लिखूँ।
शांति का सन्देश लिखूँ,
या क्रांति का आदेश लिखूँ,
स्वराष्ट्र समस्या विकट हुई,
तो क्या सुन्दर परदेश लिखूँ।
कलम भी रुदन करती है,
जब कटु शब्द ये गढती है,
पर व्यथा की कथा ही भयावक है,
फिर कैसे भारत को महान लिखूं।।
::अशोक उप्रेती