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दत्ताची आरती - जयजयजी दत्तराज भॊ दिगं...

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जयजयजी दत्तराज भॊ दिगंबरा ।

पंचारति करितो तुज तारि किंकरा ॥ धृ. ॥

त्रिगुणात्मक रुप तुझें केंवि शोभलें ।

शुद्ध कांति तारिं रविशशिहि लोपलें ॥

शरणागत भाविक नर बहुत तारिले ।

संकटिं मज पाव विभो देई आसरा ॥ १ ॥

अधसंचित दोषे चौर्‌यांशी हिंडलो कवण योगासामर्थ्ये देहि पातलों ।

धांव आता दु:खें बहुपिडित जाहलों ॥

अभयवरें विठ्ठलसुत रक्षि भवहरा ॥ २ ॥

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