1 बचपन
<p dir="ltr">इंसान का सबसे मजेदार जीवन तब होता है ,जब उसका बचपन चला होता है । मेरा भी एक बचपन का समय था ,हंसता खेलता ,खुशी से झुमता,बचपन मेरा , ना कल की चिंता ना समय की परवाह ना किसी को खोने का डर ना किसी को पाने की चाह ।ऐसा था बचपन मेरा । मां आती तो कभी दूध पिलाती ,कभी डांटती कभी प्यार करती। मां लगती मुझे सबसे प्यारी ,मां से बड़कर ना देखी कोई नारी ।<br>
ना मोह ना माया ,ना लोभ ना अंहकार ,ऐसा था बचपन मेरा ।<br>
बचपन में मैं बहुत खुश था क्योंकि ज़िन्दगी  मालूम ना था कि जिंदगी क्या होती है । पापा मेरे घर से जाते दो पैसे कमाते और घर को आते ,कुछ मुझे खाने को लाते और बाकी घर के लिए बचते ,और इसी तरह दो बक्त की रोटी खिलाते । पापा को देखा परेशानियों में उलझते ,पापा को देखा परेशानियों में पड़ते , उन्हें देख मैं सोच पड़ा और सोचा कि जल्दी से हो जाऊं बड़ा और दो बकत की रोटी कमाऊ ,पापा की सारी परेशानियों को सुलझाऊ। बड़ा होना तो इतना आसान नहीं था ना ,अभी तो बचपन  का वक़्त देखना बाकी था । दुख तो बहुत थे घर में लेकिन सुख की भी कोई कमी ना थी । बचपन था मेरा बड़ा प्यारा लेकिन उस बचपन कि एहमियत ना थी क्योकि मुझे बड़े होने की जल्दी जो थी । आया जो समय स्कूल जाने का ,बने दोस्त मेरे बहुत से ,बाते करते बोहत बड़ी बड़ी ,सची थी या झूठी ये भला को जाने । मास्टर जी से हम बहुत डरते थे ,क्योंकि कुछ ना आए  तो डंडे बहुत पड़ते थे ,और फिर एक दूसरे कि पीठ के पीछे आकर कोई हंसते तो कोई रोते जोर जोर से , अभी भी हंसता हूं उन पलों को सोच के । उस तकनीक की कोई सुभिधा नहीं थी ,तो दूसरों के घर जाकर टीवी बहुत देखते थे , शक्तिमान ।  <br>
ईंट पथरो की गाड़ियां बहुत चलाई ,मुंह से पी पी हॉर्न बहुत बजाय ।<br>
वो बचपन था मेरा याद आता है ,उन पलों को सोच के दिल थम सा जाता है , वो ईंट की गाड़ी बनाकर  चलाना और मुंह से पी पी हॉर्न बजाकर चलाना याद आता । बचपन मेरा केसा बचपन ,बचपन के खेल निराले ,कोई शक्तिमान  के दीवाने तो कोई जैसे बिछड़े यार पुराने । ऐसा  था मेरा बचपन । ज़िन्दगी की कोई तालाश  ना थी ।,,,,,,,</p>
<p dir="ltr">To be continuing</p>
ना मोह ना माया ,ना लोभ ना अंहकार ,ऐसा था बचपन मेरा ।<br>
बचपन में मैं बहुत खुश था क्योंकि ज़िन्दगी  मालूम ना था कि जिंदगी क्या होती है । पापा मेरे घर से जाते दो पैसे कमाते और घर को आते ,कुछ मुझे खाने को लाते और बाकी घर के लिए बचते ,और इसी तरह दो बक्त की रोटी खिलाते । पापा को देखा परेशानियों में उलझते ,पापा को देखा परेशानियों में पड़ते , उन्हें देख मैं सोच पड़ा और सोचा कि जल्दी से हो जाऊं बड़ा और दो बकत की रोटी कमाऊ ,पापा की सारी परेशानियों को सुलझाऊ। बड़ा होना तो इतना आसान नहीं था ना ,अभी तो बचपन  का वक़्त देखना बाकी था । दुख तो बहुत थे घर में लेकिन सुख की भी कोई कमी ना थी । बचपन था मेरा बड़ा प्यारा लेकिन उस बचपन कि एहमियत ना थी क्योकि मुझे बड़े होने की जल्दी जो थी । आया जो समय स्कूल जाने का ,बने दोस्त मेरे बहुत से ,बाते करते बोहत बड़ी बड़ी ,सची थी या झूठी ये भला को जाने । मास्टर जी से हम बहुत डरते थे ,क्योंकि कुछ ना आए  तो डंडे बहुत पड़ते थे ,और फिर एक दूसरे कि पीठ के पीछे आकर कोई हंसते तो कोई रोते जोर जोर से , अभी भी हंसता हूं उन पलों को सोच के । उस तकनीक की कोई सुभिधा नहीं थी ,तो दूसरों के घर जाकर टीवी बहुत देखते थे , शक्तिमान ।  <br>
ईंट पथरो की गाड़ियां बहुत चलाई ,मुंह से पी पी हॉर्न बहुत बजाय ।<br>
वो बचपन था मेरा याद आता है ,उन पलों को सोच के दिल थम सा जाता है , वो ईंट की गाड़ी बनाकर  चलाना और मुंह से पी पी हॉर्न बजाकर चलाना याद आता । बचपन मेरा केसा बचपन ,बचपन के खेल निराले ,कोई शक्तिमान  के दीवाने तो कोई जैसे बिछड़े यार पुराने । ऐसा  था मेरा बचपन । ज़िन्दगी की कोई तालाश  ना थी ।,,,,,,,</p>
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