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अटल

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आज इस कष्ट की बेला में मुझे जयशंकर प्रसाद की अमर महाकृति कामायनी की पहली पंक्ति याद आ रही है:
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह 
एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन, 
एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन।

चेतन पर पहुंचना बेहद कठिन है लेकिन उस पर टिके रहना उससे भी कठिन है।लेकिन उन्होंने बता दिया की वहां पहुँच कर टिका जा सकता है।क्योंकि वो अटल थे,अटल हैं और अटल रहेंगे।
राजनीती के अजातशत्रु जिनका कोई शत्रु न हो,जिनके मित्रों की सूची में किसी एक दल का दायरा न हो।वो विदेह थे,राजनीती के शिखर पुरुष होते हुए भी इतना सरल स्वभाव,सादा जीवन,उच्च विचार। एक तरफ वो कवि थे।किन्तु कवि का ह्रदय तो बेहद नरम होता है और अटल की छवि भी वैसी ही थी।पर उनके व्यक्तित्व का ये दूसरा पहलु कैसा है जहाँ वो लौह पुरुष हो जाते हैं।दुनिया को चौंकाते हुए परमाणु परिछण करना पुरे विश्व में भारत को मजबूती प्रदान करने का सफल प्रयास।एक तरफ वो बस यात्रा लेकर लाहोर जाते हैं तो दूसरी तरफ कारगिल पर पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब भी देते हैं।
कवि और क्रांतिकारी विचारों का मिश्रण थे वो।एक कवि और क्रांतिकारी की समाविष्टि किसी एक ही इंसान में कैसे हो सकता है?इसीलिए वो अटल थे।वो बिहारी भी थे।
अंत में मुझे अटल की एक कविता याद आ रही है।और मैं इस कविता के माध्यम से भारत माता के इस सपूत को भावभीनी श्रद्धांजलि देता हूँ।

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

अभिजीत कुमार की तरफ से भारत रत्न शिरोमणि अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।

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