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पाश करि उत्पल शंख गदा। चक...

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पाश करि उत्पल शंख गदा। चक्रधान्याग्र ऋजा सुखदा॥
इक्षु धनु मातु लिंग सुसदा । हरी निजदंत कृतांतमंदा॥चाल॥
विराजे रत्‍नकलशशुंडा। दंड अतिप्रचंड, मंडित उदंड वरदित अखंड, किलब्रह्मांड मंडनाची॥ प्रभातंशंड खंडनाची॥१॥
आरती जगद्वंदनाची। उमाशिवसांबवंदनाची ॥धृ.॥
स्वयें जी भूषविणार जगा। वल्लभा दिव्यभव्यसुभगा॥
स्वहस्ती अमल- कमल विभगा। विहगगजवक्रहंस विहगा॥ चाल॥
भुजें परिरभणानुसरली। करुनि चपलता, परि न विकलता, तरुसि जशी लता वसंताची॥
सदा शीलता सुसंताची॥आर.॥२॥
प्रथम उत्पन्न विश्वकर्ता। प्रकृति रक्षूंना प्रलयिंहर्ता॥
गु्णगुण वेदशास्त्रपढता। सकलसिद्धयर्थ स्वार्थ्मर्ता॥चाल॥
असा विघ्नेश इश घ्यावा। अभय करणार, विभय भरणार,  सुकवि तरणार, सदैवाची॥
कुमति हरणार राघवाची॥ आरती.॥३॥
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