pain of violin
चाय की वो प्याली अब तक उसी तरह खिड़की के पास रखी हुई थी, जैसी कि वो पहले दिन की तरह छोड़ गयी थी, आदत थी उसकी चाय बना कर उसे कप में रख देने की ,, पीने की सुध तो वो कबके खो चुकी थी। आज उस दरख्त से उसकी तस्वीर को फिर से निकाला गया था, और फिर उसकी धूल को साफ किया गया था। जाने किस उम्मीद से वो तस्वीर को देखा करती थी और फिर उसे वहीं रख देती थी। ये रोज की कहानी थी उसकी। कोई नयी बात न थी। आज 32 साल की हो चुकी थी ऐमली,,,,, आज जन्मदिन था उसका। मगर कोई खुशी न थी उसे आज,,,,,,,,,,,आज से 10 साल पहले जब वो 22 वां जन्मदिन मना रही थी तो डेविड ने उसे एक उपहार दिया था, एक वायलन,,,, जिसमें ऐमली अपना पसंदीदा गाना बजाया करती थी,,,,,,,,और डेविड उसका साथ दिया करता था।
दोनों संगीत के उस माहौल में खो जाते थे, उसी माहौल में एक दिन डेविड भी खो गया था और ऐमली की जिन्दगी से वो संगीत हमेशा के लिए ले गया था। जिन्दगी ने दूसरा कोई तराना छेड़ा ही नहीं। तब से आज ये दिन है कि हर रोज उसी माहौल की कुछ यादें ताजा करती है ऐमली। एक पागलपन है शायद,,,,,,,ऐसा उसके पड़ोसी कहते हैं।
प्यार कोई मजाक नहीं है, कि आज किया फिर नहीं,,,,,,,,,,,ये तो ऐमली की बात कुछ और थी, जिन्दगी जी चुकी थी वो इसी एहसास का सूकं लेके कि प्यार तो हुआ............हर बार कोई एक बात याद आती तो फिर से रो पड़ती थी वो, जिन्दगी तो जैसे जुदा सी थी उसकी हस्ती से। ऐमली के डैडी एक रईस आदमी थे, फिर डेविड भी काफी कुछ छोड़ गया था पीछे, तो जिन्दगी में कमी तो कुछ न थी मगर एक अकेलापन था .......
ऐमली को समझना हमेशा से मेरे लिए एक बड़ा सवाल था, वो अपने दर्द का बयां सिर्फ मेरे सामने ही करती थी, और मैं भी उसके दर्द की गहराईयों में जितना भी डूबता था लगता था कम ही डूबा। क्या बोलती थी और क्या सुनता था मैं बस दर्द के चंद सायों में हर शाम ऐसे ही गुजरा करती थी।
कुछ ऐसा ही रिश्ता था मेरा ऐमली के साथ, के वो अपने दर्द का बयां सिर्फ मेरे सामने करती थी और मैं बस उसके सामने। हर रोज शाम को जैसे उसके घर जाना मेरे लिए एक लाजमी दस्तूर सा हो चला था। एक आह भी रहती थी के जैसे वहां न जाने पर जाने क्या करेगी ऐमली।......
तो मैं हर षाम उससे मिलने जरुर जाया करता था और जिस दिन पब्लिक होलीडे होता उस दिन तो दिन का खाना भी उसी के साथ हुआ करता था मेरा। हमंे नहीं पता था के हमारे पड़ोसी हमारे बारे में क्या बोलते थे, क्योंकि हम अपने रिष्ते की सच्चाई से रुबरु थे,,,ऐमीली किसी की परवाह नहीं करती थी। वो कहती षेखर बाबू दुनिया की जबान और दिमाग हमारे दर्दों से ज्यादा बेकार नहीं हो पायेंगे कभी।
हम एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते थे कभी,,,,कभी किसी दिन अगर मैं लेट हो जाता तो उसका फोन आ जाता था कि कहां हो ,,,,,, और मैं कहता कि बस आपके घर के रास्ते पर ही हूं,,,,वह समझ जाती की मैं आउंगा जरुर।
आज उसके जन्मदिन पर एक तोहफा लिया था मैंने उसके लिए,,,,,,एक वायलन ही,,,,जैसा कि उसे डेविड ने दिया था एक दिन।
मैं जैसे ही उसके घर पंहुचा वो रोज की तरह से अपनी बालकनी से अपने गार्डन की तरफ देख रही थी, गुमसुम सी,,,,,,ठीक किसी खाली मकान के अन्दर किसी मेज पर मर्तबान में रखे अकेले फूल की झुकी डाल की तरह।
ऐमीली,,,,,,कहां हो तुम,,,,,,,
हां षेखर आओ,,,,,,,,,,,,,कहां जाऊंगी वहीं हूं जहां से रोज तुम उठा देते हो मुझे।
जन्मदिन मुबारक हो,,,,ऐमीली मैंने उसकी तरफ उपहार बढ़ाते हुए कहा।
उसने कहा कि कुछ खास लगा नहीं मुझे षेखर मुझे आज के दिन, क्या वाकई तुम्हें कुछ लगा कि आज कुछ खास है जैसे।
मैं चुप सा हो गया,..............................
वैसे क्या लाये हो मेरे लिए आज ,,,,,,,वो बोली
तुम खुद ही देख लो षायद तुम्हें अच्छा लगे।,,,,,,,,मैंने उसके सामने बैठते हुए कहा।
वायलन गिर पड़ा उसके हाथ से जैसे ही उसने उसे पैकेट से निकाला,,,,
उसकी आंखों में आंसू से आये,,,,,,,,,,मेरी तरफ देखते हुए वो बोली,,,,,षेखर कितना खूबसूरत मजाक है ना ये,,,,,,,,,,,एक षाम इसी वायलन को मैंने उसकी याद मंे तोड़ दिया था,,,,,,,और आज जब मेरी जिन्दगी मंे एक और साल जुड़ने जा रहा है तुम फिर से वही याद उपहार में ले आये।
मैंने कहा- कि ऐमीली कभी-कभी जिन यादों में हम एक उम्र रोते हुए गुजार देते हैं एक अर्सें बाद वोही यादें हमें हसांने लगती हैं। बस येही सोच के ये उपहार में ले आया। जानता हूं कि डेविड की याद आयेगी इसके हर सुर से, लेकिन तुम्हारी उम्र के इस दौर में जबकि तुम अकेले हो साथ गुजारने को यादें भी मिल जायें तो यीषू का षुक्रिया अदा करना।
हंसते हुए बोली- वाह षेखर, तुम्हें यूं ही नहीं अपने दिल का हर राज बताती चली गई हूं आज तक, कुछ तो बात है तुममें, सच कहूं तो कभी-कभी लगता है कि अगर डेविड की जगह तुम मेरी जिन्दगी में आये होते तो इस वायलन में हर रोज एक नया तराना बजता। खैर छोड़ो मुझे अपने पैदा होने की कोई खुषी तो नहीं लेकिन तुम्हारा उपहार बुरा न मान जाये इसलिये पूछती हूं क्या पियोगे,,,,,वही रोज की तरह रेड वाइन या कुछ स्पेषल।
जिसे पी के तुम्हें खुषी मिले वो चलेगा - मैने कहा।
खुषी तो जाने क्या पी के मिले, सब कुछ तो पी चुकी हूं बस जहर को छूना बाकि हैं, लेकिन तुम साथ हो इसलिये ये आइडिया छोड़ना पड़ेगा वरना जमाना कहेगा ,,,,,,,,,,,,,, अपनी आंधी में तुम्हें भी ले उड़ी ऐमीली। हा-हा-हा उसने हंसी के साथ अपनी बात खत्म की।
मेरी कहानी भी उससे जुदा नहीं थी, मेरे परिवार में एक पिताजी थे जो कुछ बरस पहले चल बसे, उन्हें दिल की बिमारी थी, वो चाहते थे कि जाने से पहले मेरा घर बसा कर जायें, बस उनकी जिद की खातिर मैंने माला से षादी की थी, माला मेरी सोच से बेहद बेहतर लड़की थी और मुझे उससे बेहद प्यार भी होने लगा था लेकिन भगवान जिसकी किस्मत में रोना लिख देता है, हर बड़ी खुषी के बाद उसे उतना ही ज्यादा रोना पड़ता है। माला जैसे ही गर्भवती हुई, पिताजी और मैं खुषी से पागल हो उठे, बच्चे के जन्म के साथ ही माला की मौत हो गई और बच्चा भी समय से पहले पैदा होने के कारण ज्यादा दिन बच नहीं पाया था, इस सदमें से पिताजी भी चल बसे,,, एक साथ तीन चिताऐं जलाकर मैं हर रोज जल रहा था अब तक। उन तीन चिताओं की गर्मी ने कभी दिल को इतना ठंडा ही नहीं होने दिया कि प्यार की गर्मी को दुबारा महसूस कर सकूं। तो अब तक अकेला ही था और आगे भी कुछ सोचा नहीं दुबारा षादी करने का।
लगभग 10 साल पहले ऐमीली के सामने के घर में रहने आया था मैं। एक दिन अचानक रात में कुछ चीखों की आवाजें सुनकर ऐमीली के घर पंहुचा तो देखा ऐमीली अपने नौकरों पर चीख रही थी कि उन्होंने एक कमरे की सफाई समय पर नहीं की आज। मुझे लगा कि क्यों इतनी सी बात पर पूरा मौहल्ला जगा दिया है ऐमीली ने ,,,,,,,,,,,, बाद में मैंने ऐमीली को अपना परिचय देते हुए बात पूछी तो जाने उसने मेरे चेहरे में क्या देखा मुझे वो अपने और डेविड के बारे में सब कुछ बताती चली गई। तब मुझे पता चला कि वो कमरा ऐमीली और डेविड का बेडरुम था, जिसे ऐमीली ने उसी तरह ताजा रखा था जैसे कि डेविड की यादें उसके जेहन में ताजा थी आज भी।
इलाके का कोई भी इन्सान ऐमीली के घर नहीं जाता था, कोई कहता वो पागल है, कोई कहता उसमें प्रेत है,,,,,,,,, मगर मेरी तन्हाई को जाने क्यों उसकी तन्हाई एक अन्जान डोर की तरह खींचती थी हर रोज, जब भी मैं उसके घर के सामने से निकलते हुए उसे उसकी बालकोनी में उसके गार्डन के नजदीक गुमसुम देखता था।
एक दिन मैं अचानक ऐमीली के घर के दरवाजे पर पंहुच गया, डोरबेल बजाते ही नौकर आया,,,,, और मुझे पहचानते हुए बोला,,,,,, कहिए,,,,
मैंने कहा मैडम है, वो बोला- हां हैं,
उनसे कहिए षेखर बाबू आये हैं, मिलना चाहते हैं,
वो ऐमीली के पास मेरा सन्देषा लेके पंहुचा, तब तक मैं घर में दाखिल हो चुका था, काफी सजावटी और आकर्शक घर था उसका, उसकी हालत के बिल्कुल विपरीत, आष्चर्यजनक। घर पर नजर दौड़ा ही रहा था कि पीछे से एक आवाज आई,,,,,,,,,,,,मैडम ने बालकोनी में बुलाया है आपको।
मैं उसके साथ ऐमीली के पास पंहुचा,,,, ऐमीली ने मेरी तरफ देखा,,,,,,, और कहा कि आइये षेखर बाबू,,,,,,,,,, कैसे आना हुआ,,,,,,,,, आज फिर से कोई चीख सुन ली क्या आपने,,,,,,,,,,,,,
नहीं आज मेरे दिल ने चीख कर कहा कि आपसे मिलूं,,,,,,,,,,,,,,,,
हा-हा, षेखर बाबू हम चीखते हैं तो जमाना सुन लेता है,,, आप चीखे तो हमें खबर भी नहीं,,,,,,,,,,, अच्छा है,,,, वरना आपको समझाने कौन आता।
मैं हंस पड़ा।
दिल्लगी तो नहीं हो गई ना मुझसे आपको,,,,,,,,,,,हो गई हो तो बता दिजिऐगा, जाने जिन्दगी कब धोखा दे जाये और आप मेरी तरह चीखने लगें,,,, तो बता दिजिऐगा। उसने हल्की सी लड़खड़ाती आवाज में कहा।
उसके सामने षराब की बोतल देख कर मैं समझ गया कि ऐमीली नषे में हैं, मगर इतने नषे में नहीं कि बात न कर सके।
मैंने कहा कि आपसे कुछ पूछना चाहता था मैं,
पूछिये षेखर बाबू,,,,, यहां एक अर्सा हो गया न कोई कुछ पूछता है न हम कुछ बता पाते हैं किसी को,,,,,,,,,,, एक जिन्दा लाष की तरह हो गई है हमारी जिन्दगी,,,,,,,,, दिल्लगी की सबसे बड़ी सजा काट रही हूं मैं,,,,,,,,,,,,,-उसने दर्द भरी आवाज में कहा
क्या आप मुझे अपना दोस्त बनाऐंगी। उसने मेरी निगाहों में झांकते हुए कहा, क्या सच में आप मुझसे दोस्ती करना चाहते हैं।
मैैंने कहा - हां।
उसने बिना कुछ कहे मेरा हाथ थामा और बोली- षेखर बाबू , नहीं पता क्या चुराने आये हो लेकिन आज हमारी दोस्ती चुरा ली आपने, यहां कोई नहीं जिसे मैं अपना कह सकूूं जिसके साथ दो पल अपने दिल की बात कह सकूं। अच्छी लगी तुम्हारी बात,,,,,,,,
इस तरह ऐमीली के घर हर रोज षाम को जाना मेरी फितरत में षुमार हो चला था। धीरे-धीरे जो बातें उसने अपने और डेविड के बारे में बताई, मेरा दिल ने कहा कि ऐमीली एक इन्सान नहीं, मोहब्बत का खुदा है जमीं पे,,,,,,,,
दरअसल ऐमीली के पिताजी षहर के मेयर हुआ करते थे एक वक्त पे, कोलकाता षहर एक बहुत बड़ा षहर था, तो ये लाजमी है कि काफी पैसे वाले थे उसके पिताजी, एक रुतबा था षहर में,,,, अंग्रेजी षासन में उसके दादा जी ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अपना लिया जिसकी एवज में अंग्रेजों से उन्हें ये षानों-षौकत इनाम में मिली थी। वे थे तो भारतीय, इसलिए रंग रुप में अंग्रेजों से अलग थे। ऐमीली के पिताजी ने अपनी पंूजी से कई सारे व्यापारों में हाथ फैलाया था, जिस कारण उन्हें धन की कमी नहीं थी और षहर में रुतबा भी था। ऐमीली अपने पिताजी की इकलौती बेटी थी, मां ऐमीली के जन्म के कुछ समय बाद ही चल बसी थी। ऐमीली 18 साल की एक बेहद खूबसूरत लड़की थी। उसकी बातों में एक मासूमियत सी थी, वो जब भी कहीं से गुजरती तो हवा में एक धीमी सी खुषबू बिखर जाती थी। हर कोई देखने वाला दीवाना था उसका। उसके पिताजी के कारोबार में डेविड नाम का एक 24 साल का विदेष से पढ़ कर आया युवक अच्छे पद पर कार्यरत था, ऐमीली के पिताजी उसकी योग्यता से काफी प्रभावित थे, अक्सर विदेषी दोरौं पर जाने के दौरान वे अपने कारोबार की देखरेख का काम डेविड को दे जाया करते थे। डेविड एक गोरा, चिट्टा, अच्छे डील-डौल वाला युवक था। उसकी नजर ऐमीली पर उनके घर काम के सिलसिले में जाने के दौरान कई बार पड़ी थी। ऐमीली ने भी डेविड में अपने राजकुमार को पहचान लिया था।
जब भी ऐमीली के पिताजी षहर से बाहर जाते वे डेविड को किसी न किसी काम के बहाने से घर बुला लिया करती थी। मगर डेविड अपने जज्बातों को काबू में रखते हुए अपने मालिक की बेटी से इज्जत से पेष आया करता था, जबकि वे उसे पसन्द भी करता था। ऐमीली की लाख कोषिषों के बावजूद डेविड से वे दिल की बात नहीं कह पा रही थी।
एक दिन ऐमीली ने अपने पिताजी की गैरमौजूदगी में डेविड को छुट्टी दे दी। और वे खुद डेविड के घर पंहुच गई, ये वोही घर था जिसमें ऐमीली आज रहती है। डेविड का पुष्तैनी घर था ये, उसके माता-पिता में से कोई भी जिवित नहीं बचा था, परिवार अच्छा था, काफी पैसा भी था तो डेविड पढ़ाई के लिए लन्दन चला गया और वापस आते ही उसने ऐमीली के पिताजी की कम्पनी ज्वाइन की थी। काफी सुविचारों वाला तथा मेहनती लड़का था डेविड। तभी तो ऐमीली ने उसे पसन्द किया था।
खैर, डेविड के घर की डोरबैल बजाते हुए ऐमीली के दिल जोरों से धड़क रहा था, अचानक सामने डेविड को देख उसकी आंखें खुली रह गई और यही हाल डेविड का था। आप यहां,,,,,,डेविड ने लड़खड़ाती आवाज में कहा, अन्दर से उसका दिल काफी खुष हो गया था ऐेमीली को ऐसे सफेद फ्राक में एकदम परियों के रुप में देख कर। उसने कहा आईये,,,,,,,,,,कुछ काम था तो आप मुझे बुला लेती। आपने ये तकलीफ क्यों की यहां तक आने की।
ऐमीली ने अन्दर आते ही कहा,,,, एक तकलीफ ने अर्से से परेषान कर रखा था, तो ये तकलीफ उठानी पड़ी डेविड साहब।
कैसी तकलीफ,,,,,,,,,,,,,,,डेविड ने ऐमीली की आंखों में आंखे डालते हुए कहा।
ऐमीली ने हया के साथ नजरें झुका ली और कहा,,,,,,,,,, अपने दिल से पूछियेगा, जवाब मिल जायेगा। कोषिष रहेगी कि जवाब आपको मेरे जाने से पहले मिल जाये।
अरे आप खड़ी क्यों हैं, बैठिये न ,,,,,,,,,,,
हां,,,,,,,,,,,,,,ऐमीली ने उसके घर के चारों तरफ नजरें घुमायी,,,,,,,,,,,, काफी बेहतरीन घर था डेविड का सोच से भी बेहतर। तभी उसकी नजर एक कोने में रखे वायलन पर पड़ी,,,,,,,,,, वो उस तरफ उठ चली डेविड ने उसे देखा तो बोला,,,,,,,,, ये मेरा इकलौता दोस्त है इस षहर में,,,,,,,,,,,, लेकिन काफी दूर तक मेरा साथ देता है,,,,,,,,,,,,,,
अच्छा,,,,, मुझे एक बार बजा के दिखाइये न, मुझे वायलन का बहुत षौक है लेकिन कभी सीखने का मौका नहीं मिला- ऐमीली ने रोमांचित होते हुए कहा।
ठीक है आप सामने बैठिये,,,,,,,,,,,,डेविड ने वायलन हाथ मंे लेकर कुर्सी में बैठते हुए अपने सामने की कुर्सी पर इषारा करते हुए कहा।
जैसे ही डेविड ने अपनी पसंदीदा वायलन की धुन षुरु की,,,,,,,,,ऐमीली के पांव थिरकने लगे,,,,वो वायलन की धुन में खो गई लगभग आधे घंटे तक दोनों उस माहौल में डूबते चले गये,,,,ऐसा लग रहा था मानों दोनों को अपने जीवन का रहस्य मिल चुका हो, और दोनांे रोमांचित हो कर खुद को भूल चुके थे और जब आंख खुली तो ऐमीली डेविड की बांहों में थी।
दोनों उसी अवस्था में एक दूसरे को देखते जा रहे थे, तभी ऐमीली ने डेविड के गालों को चूमते हुए खुद को दूर किया। डेविड उसे देखता रह गया,,,,,,,,,,,,,,,,,ऐमीली भी उसकी तरफ ही देखती जा रही थी। डेविड को जाने क्या हुआ उसने ऐमीली को अपनी बांहों में भर लिया और कहा ऐमीली ऐसा रोमांच ऐसी बेखुदी मैंने आज तक महसूस नहीं कि। क्या तुमने की कभी ? ऐमीली ने उसकी बाहों में सर छुपाते हुए कहा,,,,,,मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मेरी जिन्दगी में मेरे होने का मतलब आज समझ आया मुझे,,,,,,,,,,,,,,, डेविड मैं सारी जिन्दगी इसी वायलन की धुन में खोना चाहती हूं,,,, क्या तुम सारी उम्र मेरे लिए वायलन बजाना पसन्द करोगे।
डेविड ने उसे चूमते हुए अपनी हामी भर दी।
उस दिन के बाद जब कभी डेविड और ऐमीली मिले ,,,,,,,,,,,,,,,, उस माहौल का वक्त रोज-ब-रोज बढ़ता चला गया और जब लगने लगा कि अब अलग रहना मुष्किल है तो ऐमीली ने अपने पिताजी से डेविड के बारे में बात की और उसके पिताजी ने बिना एतराज दोनों की षादी करा दी। काफी खुष थे वे दोनों ऐमीली अभी 19 साल की ही थी,,,,,,,,,,,, पहला प्यार,,,,,,,,,,,,,,,फिर षादी,,,,,,,,,और जिन्दगी में जिस चीज की कमी थी वो सब पूरी हो चुकी थीं,,,,,,,,,,,,बस प्यार ही प्यार था हर जगह,,,,,,,,,, कभी जिन्दगी में दुःख से सामना नहीं हुआ था ऐमीली का, डेविड के लिए भी पूरी दुनिया में ऐमीली ही एक षख्स थी जो उसके जीने का कारण थी अब।
ऐमीली के पिताजी की मौत के बाद कारोबार की सारी जिम्मेदारी डेविउ पर थी। सब कुछ था, कुछ कमी न थी जीवन में,,,,,,,,,,,, हर रोज मोहब्बत के साथ षुरु होता और हर षाम मोहब्बत के साये में गुजरती थी, वायलन की धुन से सरोबार।
तीन साल बाद एक रोज डेविड को किसी काम से विदेष जाना पड़ रहा था, काम एक दिन का था, यह पहली बार था जब डेविड ऐमीली को छोड़ कर जाना पड़ रहा था, ऐमीली का दिल एक बच्चे की तरह मासूम था आज भी, उसने बहुत जिद की डेविड से कि वो उसे भी अपने साथ ले जाये, लेकिन डेविड के साथ कुछ और लोग भी जा रहे थे, मगर परिवार के बिना तो डेविड ने उसे लाख समझा बुझा कर मना लिया कि वो कल षाम वापस आ जायेगा बस एक रात की बात है, और उसने कम्पनी से दो तीन लड़कियों को रात में उसके घर रुकने बुला दिया है तो डरने की कोई बात नहीं है। ऐमीली की आंखांे से आंसू निकल पड़े, आज तक डेविड ने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा था, मगर यह पहली बार था, जाना जरुरी था। डेविड निकल पड़ा।
दूसरे दिन षाम होने को आई डेविड की कोई खबर नहीं मिली थी ऐमीली को,,,,,,,,उसका दिल घबराने लगा था,,,,,,,,उसने काफी कोषिष की डेविड के मोबाइल पर काॅल करने की लेकिन फोन बन्द आ रहा था। लगभग दो घण्टे बाद एक खबर को सुन कर ऐमीली हमेषा के लिए खो गई,,,,,,,फोन एयर इण्डिया से था, खबर थी कि इंग्लैण्ड से कोलकाता आ रही फ्लाईट लैण्ड होने से 5 मिनट पहले ही क्रैष हो गई थी, काफी लोग बच गये थे लेकिन डेविड उनमें से नहीं था। वो जा चुका था हमेषा के लिए।
मोहब्बत की एक और कहानी खत्म हो चुकी थी,,,,,,,,,,,,वायलन की वो धुन अब मातम की खामोषी में खो गई थी।,,,,,,,,,,,,,,,,,
सारा कारोबार बेच कर ऐमीली डेविड के घर में रहने लगी थी,,,,,, अकेली दुनिया से अलग, जाने क्या सोचती रहती थी हमेषा,,,,,,,,, षराब की लत तो नहीं थी उसे लेकिन दो पैग में आधा दिन गुजार देती थी वो,,,,,,,,,कभी किसी से कुछ नहीं कहती,,,,,,,,,आधा समय डेविड के कमरे में गुजारती थी आधा दिन बालकोनी में, जहां कभी-कभी वायलन की धुन में वो डेविड के साथ बरसात के मजे लिया करती थी।
षेखर बाबू,,,,,,,,,,,,,,,बर्फ कितनी डालंू,,,,,,,,,,,,, रोज की तरह दो क्यूब या आज मेरी तरह एक भी नहीं। ऐमीली ने मेरे सामने वाइन का गिलास पकड़ते हुए कहा। वो आलरेडी चार पैग पी चुकी थी, नषे में थी,,,,,,,,,,,, मुझे उसे देख के तरस भी आता था और प्यार भी,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरा इस दुनिया में कोई नहीं बचा था लेकिन अब मैं ऐमीली को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था,,,,,,,,,,,,,,,
मैंने कहा ,,,,,,,,,,, आज आपका दिन है,,,,,,,,,, जो पिलायेंगी चलेगा,,,,,,,,,,,, जहर के सिवा,,,,,,मैं हसां तो वो भी हंस पड़ी,,,,,,,,,,, बहुत खूबसूरत रही होगी वो उस दिन जब वो डेविड के घर आई होगी,,,,,,,,, यही सोच के मैं गिलास गटक गया