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बात उस समय की है, जब मैं बहुत बुरी परिस्थिति से गुजर रहा था. मेरी मनोस्थिति बहुत खराब थी. इच्छित नौकरी पाने में नाकामयाब रहा, इच्छित व्यापार करने में भी असफ़ल रहा. असफ़लताओं से मन विचलित हो गया था. क्या करूँ, कैसे करूँ, कुछ भी नहीं सूझ रहा था. अकेला सुनसान स्थानों पर बैठा-बैठा अपनी सङी-गली किस्मत को कोसता रहता था. मन में सदा उथल-पुथल मची रहती थी. हर वक्त अपनी जिंदगी बनाने का
उपाय सोचता रहता था.
एक दिन पार्क में बैठा अखबार पढ़ रहा था. मेरी नज़र कुछ विज्ञापनों पर पड़ी. वे तंत्र-मंत्र वाले विज्ञापन थे. मेरे मन में उम्मीद की किरण जगी. मस्तिष्क में विचार उमड़ने लगे कि तंत्र-मंत्र के द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ण की जा सकती है. मेरा तंत्र-मंत्र पर तो विश्वास है, पर तांत्रिकों पर नहीं. यहां तो ढोंगी ही भरे पड़े हैं...पर कोई तो सच्चा होगा, किसी के पास तो सचमुच तंत्र-मंत्र का ज्ञान होगा. सच्चे तांत्रिक को ढूंढ़ना ही बड़ी समस्या थी. मैं शहर और शहर के आसपास के स्थानों पर गया जहां तांत्रिकों के होने का पता चला, पर सच्चा कोई नज़र नहीं आया था...