मेरी विचारधारा
<p dir="ltr">है अंधकार छाया, अंधेर हो रही है।<br>
संताप की है काया,अवनि रो रही है।।<br>
छल  दंभ  द्वेष से हर   व्यक्ति  श्राप्त है,<br>
हर मनुज के हृदय में कुछ विषय व्याप्त है,<br>
सब पतित बन गए है मानवता खो रही है।<br>
है अंधकार- - - - - - - - -<br>
जीवन कपट के गर्त में चला है,<br>
हर तरफ आज देखो अंगार सा जला,<br>
है संस्कार खोया करुणा भी सो रही है।<br>
है अंधकार- - - - - - - - - - -   -<br>
माता का 'आँचल 'भी आज कितना व्याकुल है,<br>
स्तब्ध  है  धरा  हर  व्यक्ति  यहाँ  आकुल है,<br>
इच्छाओं की कभी भी न तृप्ति हो रही है।<br>
है अंधकार- - - - -    - -  - - -  <br>
           <br>
           "आँचल" अंकन</p>
संताप की है काया,अवनि रो रही है।।<br>
छल  दंभ  द्वेष से हर   व्यक्ति  श्राप्त है,<br>
हर मनुज के हृदय में कुछ विषय व्याप्त है,<br>
सब पतित बन गए है मानवता खो रही है।<br>
है अंधकार- - - - - - - - -<br>
जीवन कपट के गर्त में चला है,<br>
हर तरफ आज देखो अंगार सा जला,<br>
है संस्कार खोया करुणा भी सो रही है।<br>
है अंधकार- - - - - - - - - - -   -<br>
माता का 'आँचल 'भी आज कितना व्याकुल है,<br>
स्तब्ध  है  धरा  हर  व्यक्ति  यहाँ  आकुल है,<br>
इच्छाओं की कभी भी न तृप्ति हो रही है।<br>
है अंधकार- - - - -    - -  - - -  <br>
           <br>
           "आँचल" अंकन</p>