लालच का फल
एक बार की बात थी एक राजा था जो हजारीबाग पर राज करता था दुनिया में दो ही चीज जिससे वह बहुत प्यार करता था एक था सोना और दूसरी उसकी बेटी एक बार उसने घोर तपस्या करके साधु से किसी भी चीज को सोने में बदलने का वर मांग लिया इतना खुश हो गया कि जिस भी चीज को छोटा और वह सोने में बदल जाता उसमें कई चीजों को सोने में बदल दिया था वह तो कुछ खा भी नहीं पा रहा था क्योंकि वह खाता तो वह सोने में बदल जाता था वह दुखी होकर अपनी बेटी के पास गया और उससे माफी मांगने के लिए मिला उसकी बेटी भी सोने में बदल गई जबकि उसकी बेटी पहले से ही मना कर दी थी कि आप इतना लालच मत कीजिए फिर उसे बहुत पश्चाताप आया और उसने फिर करके शादी से बोला कि कृपया मुझे लौटा दो तो साधु ने मैं उससे कहा कि तुम इस पवित्र पानी डाल दो और जिन इन चीजों को तुमने सोने में बदला है फिर उसके बाद राजा बहुत शर्मिंदा हुआ और अपने किए पर पश्चाताप करने लगा वह इतना लज्जित था कि किसी से नजर भी नहीं मिला पा रहा था उसके बाद उसकी बेटी ने कहा आपने जो कि आप उसके लिए शर्मिंदा है आवा गया पैसा कभी मत कीजिएगा और और हम शांति और प्रेम भाव से रहेंगे और जीतना मिले उसी में संतोष करेंगे इसी के साथ हुआ
अपना जिंदगी खुशी-खुशी बिताने लगे