१६ श्रृंगार कर आई शेरोवाली माँ!
रचनाकार-- रुद्र संजय शर्मा
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)
तुझको पूजेंगे ;सेवा करेंगे।
तेरी सेवा में पूरा मन लगा देंगे।
दिन रात तेरे ही गीत बजेंगे।
बजे भी क्यों ना?
अरे! बजे भी क्यों ना?
आई है पावन वेला।
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)
कन्याओं को पूजेंगे ; भोजन करवाएंगे।
जो माँ ! प्यारा रूप है तेरा।
सांज को हम भजन संध्या रखेंगे।
रखे भी क्यों ना?
अरे!रखे भी क्यों ना?
हर कोई है तेरा बेटा।
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)
चारों दिशाओं में ; होंगे तेरे ही चर्चे।
पंडाल सजेंगे ; ५६ भोग लगेंगे।
कुछ लोग दुर्गा पाठ करेंगे।
करें भी क्यों ना ?
अरे !करें भी क्यों ना?
देखी सब ने तेरी महिमा।
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)
देर रात्रि तक ,लोग करेंगे गरबे।
बच्चे बूढ़े सभी नाचेंगे।
तेरे ९ दिनों को ;हर्ष से भर देंगे।
नाचे भी क्यो न?
अरे! नाचे भी क्यो न?
आई ९ दिन की वेला।
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)
कई लोग तेरे लिए रोज़ा रखेंगे।
कुछ अन्न- जल ग्रहण ना करेंगे,मौन रहेंगे।
कुछ लोग ९ दिनों के लिए ,चरण पादुका त्याग देंगे।
त्यागे भी क्यो न?
अरे ! रखे भी क्यो न?
रखते है तुझ मे श्रद्धा।
१६ श्रृंगार कर आई शेरावाली माँ,
लाल लाल चुनरी में आई माई जगदंबा।
ओ हो हो हो......
ओ हो हो हो......
ओ हो हो ,ओ हो हो हो...(२)