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पूर्णपणें सार अविट आचार ।...

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पूर्णपणें सार अविट आचार । सारासार विचार निजतेजें ॥ १ ॥

निर्गुणीं आकार सर्वत्र साकार । एकरूपें विचार निजतेजें ॥ २ ॥

मुक्ताई चैतन्य उवघेंचि धन । आदि अंतु खुण निवृतीची ॥ ३ ॥

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