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मुक्तलग चित्तें मुक्त पै ...

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मुक्तलग चित्तें मुक्त पै सर्वदां । रामकृष्ण गोविंदा वाचें नित्य ॥ १ ॥

हरिहरिछंदु तोडी भवकंदु । नित्य नामानंदु जपे रया ॥ २ ॥

सर्वत्र रूपडें भरलेंसे दृश्य । ज्ञाता ज्ञेय भासे हरिमाजी ॥ ३ ॥

मुक्ताई सधन हरी रूप चित्तीं । संसारसमाप्ति हरिच्या नामें ॥ ४ ॥

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