Bookstruck

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा[1] का
गुहर[2] में महव[3] हुआ इज़्तराब[4] दरिया का

ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब[5]
मगर सितमज़दा[6] हूँ ज़ौक़े-ख़ामा-फ़र्सा[7]का

हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ां[8] है बहार, अगर है यही
दवाम[9] क़ुल्फ़ते-ख़ातिर[10] है ऐश दुनिया का

ग़मे-फ़िराक़[11] में तकलीफ़-सैरे-गुल[12] न दो
मुझे दिमाग़[13] नहीं ख़न्दा-हाए-बेजा[14] का

हनूज़[15] महरमी-ए-हुस्न[16] को तरसता हूँ
करे है हर बुने-मू[17] काम चश्मे-बीना[18] का

दिल उसको पहले ही नाज़ो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहां हु्स्न के तक़ाज़ा का

न कह कि गिरिया[19] बमिक़दारे-हसरते-दिल[20] है
मेरी निगाह में है जमओ़-ख़रज[21] दरिया का

फ़लक को देखके करता हूँ उसको याद ‘असद’
जफ़ा[22] में उसकी है अन्दाज़[23] कारफ़रमा[24] का

शब्दार्थ:
  1. जगह की तंगी
  2. मोती
  3. लीन
  4. तड़प
  5. ख़त का जवाब
  6. सताया हुआ
  7. कलम घिसने की आदत
  8. पतझड़ के पैरों की मेंहदी
  9. हमेशा
  10. दुख, क्लेश के लिए
  11. विरह के दु:ख
  12. गुलाबों में सैर का कष्ट
  13. मन
  14. अकारण हँसना
  15. अभी
  16. रूप से परिचय
  17. बाल की जड़
  18. देख सकने वाली आँख
  19. रुदन
  20. दिल की हसरत के अनुपात से
  21. उतार-चढ़ाव
  22. गुस्से
  23. ढंग
  24. हुकमदान
« PreviousChapter ListNext »