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दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं

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दायम[1] पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

क्यों गर्दिश-ए-मुदाम[2] से घबरा न जाये दिल?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र[3] नहीं हूँ मैं

या रब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये
लौह-ए-जहां[4] पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर[5] नहीं हूँ मैं

हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत[6] के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे?
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर[7]नहीं हूँ मैं

रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यों दरेग़
रुतबे में मेहर-ओ-माह[8] से कमतर नहीं हूँ मैं

करते हो मुझको मनअ़-ए-क़दम-बोस[9] किस लिये
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं?

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार[10] हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं"

शब्दार्थ:
  1. हमेशा
  2. हमेशा की चक्कर
  3. जाम
  4. संसाररूपी पृष्ठ
  5. बार बार लिखा हुआ शब्द
  6. कष्ट
  7. लाल,पन्ना,सोना और मोती
  8. सूरज और चाँद
  9. पैर छूने से मना
  10. वृति (पेंशन) पाने वाला
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