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हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां मुझ से

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हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां[1] मुझ से
मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबां[2] मुझ से

दरस-ए-उनवान-ए-तमाशा[3] ब तग़ाफ़ुल ख़ुशतर
है निगह रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गां[4] मुझ से

वहशत-ए-आतिश[5]-ए-दिल से शब-ए-तनहाई में
सूरत-ए-दूद[6] रहा साया गुरेज़ां[7] मुझ से

ग़म-ए-उश्शाक़[8], न हो सादगी-आमोज़-ए-बुतां[9]
किस क़दर ख़ाना-ए-आईना है वीरां मुझ से

असर-ए-आबला[10] से जाद-ए-सहरा-ए-जुनूं[11]
सूरत-ए-रिश्ता-ए-गौहर[12] है चिराग़ां[13] मुझ से

बे-ख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त[14] हो जो
पुर[15] है साए की तरह मेरा शबिस्तां[16] मुझ से

शौक़-ए-दीदार में गर तू मुझे गरदन मारे
हो निगह मिस्ल-ए-गुल-ए-शमअ़[17] परेशां[18] मुझ से

बेकसी हाए-शब-ए-हिज़र की वहशत, है -है
साया ख़ुरशीद-ए-क़यामत[19] में है पिनहां[20] मुझ से

गर्दिश-ए-साग़र-ए-सद जल्वा-ए-रंगीं[21] तुझ से[22]
आईना-दारी-ए-यक-दीदा-ए-हैरां मुझ से

निगह-ए-गरम से इक आग टपकती है 'असद'
है चिराग़ां[23] ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-गुलिस्तां[24] मुझ से

कुछ अन-छपी पंक्तियां 1816 से:

बस्तन-ए-अ़हद-ए-मुहब्बत हमा ना-दानी था
चश्म-ए-नकशूदा रहा उक़दा-ए-पैमां मुझ से

आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक शोला-ए-ईमा तुझ से
चश्मक-आराई-ए सद-शहर चिराग़ां मुझ से

शब्दार्थ:
  1. बरकरार
  2. रेगिस्तान
  3. तमाशे के शीर्षक से शिक्षा लेना
  4. पलकों को बाँधने का धागा
  5. आग का डर
  6. धुएं का सदृश
  7. दूर-दूर
  8. आशिकों का दुःख
  9. बुत को सादगी सिखाना
  10. छालों के होने से
  11. उन्माद के रेगिस्तान का रस्ता
  12. जैसे मोतियों की लड़ी
  13. रौशन
  14. आराम की भूमिका के बिस्तर
  15. भरा हुआ
  16. सोने का कमरा
  17. शमा के फूल की तरह
  18. बिखर जाए
  19. क़यामत का सूरज
  20. छुपा हुआ
  21. रंगबिरंगा प्याला सबके हाथों से गुजर रहा है
  22. तेरे कारण
  23. जलता हुआ
  24. बाग का करकट
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