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कहूँ जो हाल, तो कहते हो

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कहूं जो हाल तो कहते हो, 'मुद्दआ कहिये'
तुम्हीं कहो कि जो तुम यूं कहो तो क्या कहिये

न कहियो तान[1] से फिर तुम, कि हम सितमगर हैं
मुझे तो ख़ू[2] है कि जो कुछ कहो, बजा कहिये[3]

वह नश्तर[4] सही, पर दिल में जब उतर जावे
निगाह-ए-नाज़[5] को फिर क्यूं न आशना[6] कहिये

नहीं ज़रीहाए-राहत[7] जराहत-ए-पैकां[8]
वह ज़ख़्म-ए-तेग़[9] है जिस को कि दिल-कुशा[10] कहिये

जो मुद्दई[11] बने, उस के न मुद्दई बनिये
जो ना-सज़ा[12] कहे उस को न ना-सज़ा कहिये

कहीं हक़ीक़त-ए-जां-काही-ए-मरज़[13] लिखिये
कहीं मुसीबत-ए-ना-साज़ी-ए-दवा[14] कहिये

कभी शिकायत-ए रंज-ए गिरां-निशीं[15] कीजे
कभी हिकायत-ए सब्र-ए गुरेज़-पा[16] कहिये

रहे न जान, तो क़ातिल को ख़ूं-बहा[17] दीजे
कटे ज़बान तो ख़ंजर को मरहबा[18] कहिये

नहीं निगार[19] को उल्फ़त न हो निगार तो है
रवानी-ए-रविश[20]-ओ-मस्ती-ए-अदा कहिये

नहीं बहार को फ़ुरसत, न हो बहार तो है
तरावत-ए-चमन[21]-ओ-ख़ूबी-ए-हवा कहिये

सफ़ीना[22] जब कि किनारे पे आ लगा 'ग़ालिब'
ख़ुदा से क्या सितम-ओ-जोर-ए-ना-ख़ुदा[23] कहिये

शब्दार्थ:
  1. कटाक्ष
  2. आदत
  3. हाँ में हाँ मिलाना
  4. बर्छा
  5. अदा भरी नज़र
  6. प्रेमी
  7. चैन का साधन
  8. तीर का घाव
  9. तलवार का घाव
  10. सुखद
  11. दुश्मन
  12. अनुचित बोले
  13. रोग के कष्ट की सच्चाई
  14. दवा के काम न आने की कठिनाई
  15. जम कर बैठ जाने वाले दुःख की शिकायत
  16. भागने वाले धीरज की कथा
  17. ख़ून की कीमत
  18. स्वागत करना, दुआ देना
  19. प्रेयसी
  20. मंथर गति की सुँदरता
  21. बाग़ की ताज़गी
  22. नाव
  23. नाव चलाने वाले की कठोरता और अत्याचार
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