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बाग़ पाकर ख़फ़कानी ये डराता है मुझे

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बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी[1], ये डराता है मुझे
साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई[2] नज़र आता है मुझे

जौहर-ए-तेग़[3] ब-सर-चश्मा-ए-दीगर[4] मालूम
हूं मैं वह सब्ज़ा[5] कि ज़हराब[6] उगाता है मुझे

मुद्दआ महव-ए-तमाशा-ए-शिकसत-ए-दिल[7] है
आईनाख़ाने में कोई लिये जाता है मुझे

नाला[8] सरमाया-ए-यक-आ़लम-ओ-आ़लम[9] कफ़-ए-ख़ाक[10]
आसमां बेज़ा-ए-क़ुमरी[11] नज़र आता है मुझे

ज़िन्दगी में तो वह महफ़िल से उठा देते थे
देखूं, अब मर गए पर, कौन उठाता है मुझे

शब्दार्थ:
  1. पागलपन का रोगी
  2. साँप
  3. तलवार की चमक
  4. झरने का तट जैसा
  5. हरियाली
  6. ज़हरीला पानी
  7. टूटते दिल का तमाशा देखने में लीन
  8. विलाप
  9. सारी दुनिया के गुण और दुनिया
  10. मुठ्ठी भर राख़
  11. सफेद कबूतरी का अंडा
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