//भ्रष्टाचार//
//भ्रष्टाचार//
क्या कहा- 'भ्रष्टाचार',,,,, वो भी मेरे राज्य में....
"मंत्री जी एक समिति बिठाओ"। राजा ने फरमान सुनाकर दरबार को अपराह्न भोजनावकाश तक मुल्तबी कर दिया।
फरियादी अब तक हाथ जोड़े दरबार में ही खड़े थे। सारे दरबारी, अपनी खैनी बीड़ी की तलब को मिटाने के लिए अपनी अपनी जेबें टटोलने लगे,,,,,
क्यों खड़े हैं अब तक,,, महाराज ने जो कहा वो सुन लिया न..... अब जाओ और एक महीने बाद आना.....फरियादी विजयीभाव लेकर वहाँ से विदा हुए।
मंत्री जी के ससुर जो कि दो साल पहले ही रिटायर हुए थे।
दरबार में ही मुंशी थे। जब तक नौकरी थी खाया पिया उड़ाया पर अब पेंशन के सहारे बड़ी मुश्किल से घर चला पा रहे थे। उनके साले भी धनाभाव में बेकार ही पड़े थे। अब मौका था,, किसी को अध्यक्ष तो किसी को सदस्य बना लेने का..... वो लिस्ट बना ही रहे थे कि महाराज का फोन आ गया।
सुनो! महारानी कह रही हैं। कि अगर इस समिति में उनके भाइयों का नाम नहीं आया न ? तो मैं मायके चली जाऊँगी,, थोड़ा देख लेना मंत्री .....
"जो हुकुम महाराज " मंत्री जी ने मन मसोसकर हामी भरी और अर्दली पर गुर्राए। "इधर आ हरामखोर" जल्दी से एक गिलास पानी दे,,,, "ओए कैसे चल रहा है तू" "कामचोर" नमक हराम..... पैर में बिल्ली बंधी है क्या?
राजा पर आ रहे गुस्से को मंत्री जी ने अपने अर्दली पर उतारकर अपार संतुष्टि वाली सांस ली।
महारानी के भाई को अध्यक्ष बनाया गया, उसके सदस्यों में मंत्री से लेकर अन्य दरबारियों के भाई भतीजे ससुर दामाद साले वगैरह को स्थान दिया गया।
मोटे मद के अनुमोदन के साथ तीन महीने का समय लेकर पूरा दल रवाना हुआ ।
यूरोप अमेरिका और अफ्रीका से लेकर अंटार्कटिका तक के भ्रमण के बाद समयावधि समाप्त होने के दस दिन उपरान्त पूरा दल गाजे बाजे के साथ वापस आ गया।
पूरी यात्रा का टीए डीए क्लेम और फालतू लगे हुए समय के मानदेय के भुगतान हो चुकने के बाद टीम ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की,,, जिसमें ये स्वीकार किया गया था कि "राज्य में भ्रस्टाचार हो रहा है।" और इसे रोकने के उपायों के अध्ययन के लिये एक टीम के पुनः गठन का सुझाव भी इसमें शामिल किया गया था।
(गौर फरमाइए ऐसे महाराज हो या मंत्री हर विभाग में विद्यमान हैं)