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प्रेम धारा

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बचपन से छंलाग मार कर यौवन की सीढी चढते हर युवा विवाह के बंधन में कैद होने के सपने देखने लगता है। युवक और युवती में कोई भेद नही है। दोनो का दिल एक जैसा धडकता है। सपनों में खो जाना और किसी के साथ जीवन भर साथ रहने की कामना करना, अपने आप ही दिल में बस जाता है। भारतीय संस्कृति कुछ अलग है, युवा दिल धडकता है, परन्तु जहां परिवार तय करता है, चुपचाप पवित्र विवाह बंधन में बंध जाता है। अपना चाह, पसन्द भूल जाते है। परिवार की पसन्द सिर आंखों में, बस वही सपनों का राजकुमार या फिर राजकुमारी, पूरी जिन्दगी उसी के संग बिताने के लिए पवित्र अग्नि को साक्षी मान कर सात वचन और सात फेरे भी ले लेते हैं।

 

जून महीने की उमस वाली गर्मी से बेहाल सरिता साडी के पल्लू से माथे और मुंह पर आया पसीना पोछ रही थी। अभी सुबह के सिर्फ दस बजे थे, लेकिन जानलेवा गर्मी के कारण घर के काम पूरे होने का नाम ही नही ले रहे थे। गर्मी ने बदन को निचोड कर पूरा दम निकाल रखा था। जब दम ही निकल रहा है, तो काम करने को मन ही नहीं कर रहा था। तभी बिजली गुल हो गई. छत से लटका पंखा मौन हो गया। दिल्ली नगरी में जून की गर्मी वैसे अपनें में जानलेवा है, उपर से बिजली का रूठना एक आम बात है, बात बात में रूठ कर कोप भवन में बैठ जाती है, सभी यतन, प्रयतन किसी काम नही आते, कोई नही मना सकता रूठी बिजली रानी को। सरिता ने घडे से एक गिलास पानी लिया और चारपाई पर बैठ कर पीने लगी. तभी सरिता की सासूमां ने आवाज लगाई।

 

“बेटी, मैं कथा में जा रही हूं।”
“ठीक है, मांजी।”

 

पास के पार्क में एक स्वामीजी की भागवत कथा आज से शुरू हुई, जो एक सप्ताह तक चलनी है। सुबह दस से एक बजे और फिर शाम के पांच से आठ। सासूमां तो चली गई कथा में। बहुत नामी कथावाचक हैं, बहुत नाम है, टेलीविजन पर अक्सर दिखाई देते है। जब पास के पार्क में कथा बांटने आए हैं, तो कोई मौका नही चूकना चाहती है, सासूमां। वहां तो जनेरेटर से पंखे, कूलर चलेगें, सासूमां तो मजे में कथा सुनेगी और बहू सरिता गर्मी में घर के काम करेगी। कोई बात नही, यही नियती है।
पति समीर और ससुर काम पर चले गये थे। सरिता चारपाई पर लेट गई। कुछ बचपन की बाते मस्तिषक के किसी कोने से बाहर आई। कुछ हल्की सी मुस्कुराहट होथों पर छा गई। यह दिल्ली शहर में डीडीए का जनता फ्लैट, एक छोटा सा कमरा, पति, सास ससुर के साथ और वो सहारनपुर की बडी सी हवेली, मशहूर कंपनी बाग के पास, क्या यही नियति है, कि एक धन्ना सेठ की लडकी आज जनता फ्लैट में जिन्दगी बिता रही है? कहां काम करने के लिए नौकर होते थे, आज खुद सब काम करने पढते है? वो बचपन के दिन कितने अच्छे और हसीन थे। क्या कभी लौट के आएगें?

 

पसीने की चन्द बूंदे माथे से आंखों पर फिसल गई। साडी के पल्लू से माथा और मुंह पोंछा। खिडकी से हवा का एक हल्का सा झोंका आया और सारा चित प्रसन्न कर गया। देखा तो बाहर काले बादलों ने रौशनी को छुपा कर अंधेरे को उजागर कर दिया। बारिश की मोटी बूंदों का पर्दापर्ण हो गया। देखते ही देखते तेज बारिश शुरु हो गई। बालकनी से धुले कपडों को समेटा। सासूमां भी बारिश में भीगती तेज कदमों के साथ वापिस आ गई। सासूमां ने आते ही कथावाचक की तारीफों के पुल बांध दिये, जैसे उस जैसा और कोई कथा दुनिया में है ही नही। सरिता हूं हां करती रही, उसे किसी कथा वाचक में कोई रूचि नही थी।

 

पति समीर एक मोटर गैराज में मैकेनिक और ससुर फेरी में सामान बेचने का काम करते है। एक ननद, जिसकी शादी हो चुकी थी। यही उसका परिवार था। एक कमरे में सोना, रहना, बैठना सभी कुछ करना पडता है। मजबूरी है, क्या करे, सबको निर्वाह करना पडता है। रसोई को बालकनी में मिला कर थोडा बडा कर दिया, सास ससुर रात को वहां बेडरूम वनाते है और छोटा का कमरा बन जाता है, सरिता और सागर का बेडरूम।

 

रात को समीर की बांहों में सरिता गुम हुई पूछने लगी “देर से क्यों आते हो। सारा दिन इंतजार में बीतता है। वक्त काटते नही कटता।“
“अब तो आ गया हूं, कोई शिकायत नही, यह समय है, सिर्फ प्यार का।“ कह कर समीर ने सरिता को अपने में समा लिया। पति और पत्नी के बीच अब कोई नही, सिर्फ प्रेम, बहते प्रेम की धारा। बहते प्रेम की धारा में सिर्फ समीर और सरिता। रुपये, पैसों की कमी, जगह की कमी, कुछ नही खलता। बहती प्रेम की धारा सब कुछ भुला देता है। याद रहता है तो सिर्फ प्यार और प्रेम की धारा। पति, पत्नी और बहती प्रेम की धारा।

 

 

मनमोहन भाटिया

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