मर गई इंसानियत
सोचा घटना एक सुनाऊँ जग को
दर्पण एक दिखाऊँ सबको
अर्ध दोपहर समय एक बार एक
नवयुवक गया स्वर्ग सिधार
जब वह पहूंचा भगवान के द्वारे
पूछा यूवक से प्रभु ने आश्चर्यवस
इतनी शीघ्रता क्यो तुम ने दिखाई
आयु से पूर्व ही प्राण गवाई
कहता हैं करुण स्वर में यूवक
म्रत्यु नहीं हूई है मेरी हत्यारे हैं धरती
वाशि,दुर्घटना से पीड़ित था में करता
विनती सहयता की किंतु देखकर अनदेखा करते
गुजरते रहे निकट से मेरे अनसुना कर मेरी पुकार
चलते रहे अपनी मंजिलों को पाने अपनी ही राह
प्रभु गम नहीं मुझें मेरी म्रत्यु का
गम है इस कारण की मर गयी इंसानियत