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रहस्य अतित का

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अंधेरे ने ढक दिया प्रकाश को
दहशत में खो गया अपनापन
जो अपना होकर भी अपना नहीं लगे
नफरत ने ली जगह प्यार की
जब खो गई राह,हो अंधेरा ही अंधेरा
डूब  गयाआँसु के समंदर में
उम्मीदों का शिखर,निराशा ही निराशा
क्या हो जब हार गया मन

किसी ने चाहा नहीं होगा अन्त
अपना किंतु चहता है मेरा मन
क्यो रूठ गई जिंदगी
खुशियाँ भी तकलीफ हैं
जितना भी चाहू भूलना वह यादें
याद आती हैं बार-बार तोड़ देती हैं
मन मेरा कोई तो राह होगी जो उबार दे अतित से

फिर उठा एक प्रशन मन में की में ही क्यो
क्यो हूआ यह जिंदगी में,जी के मरना है खाव्हीश मेरी मर-मर के जीने से हैं मौत भली

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