Bookstruck

गर्भावस्था में कामवासना

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

        मनुष्य के मन में एक साधारण सी भावना होती है कि गर्भावस्था में संभोग क्रिया करने से मां या होने वाले बच्चे को हानि होती है लेकिन यह धारणा गलत है। गर्भावस्था में संभोग करना हानिकारक नहीं होता है परन्तु फिर भी सावधानी ही सफलता की कुंजी है।

        गर्भावस्था के शुरू के सप्ताह या फिर शुरू के माह में ही रक्तस्राव हो या फिर स्त्री को पहले ही गर्भपात व गर्भाशय के अन्य विकार हो तो ऐसी दशा में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए। इसके लिए स्त्री को अपने डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर से किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने में हिचक नहीं करनी चाहिए।

        गर्भावस्था के दौरान संभोग क्रिया कोई आवश्यक चीज नहीं है। यह तभी करनी चाहिए जब स्त्री-पुरुष दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हों।

        गर्भावस्था के समय में दिमागी उलझने, चिन्ताएं, पारिवारिक, आर्थिक कारण या कोई परेशानी होने पर संभोग करने के बारे में सोचना भी बेकार है। ऐसा कार्य जिसमें व्यक्ति को मानसिक शान्ति न प्राप्त हो, बेकार होता है।

        स्त्री के शरीर में बच्चेदानी चारों ओर से हडि्डयों से घिरी रहती है। बच्चेदानी में भी एक झिल्ली होती है जो एक पानी के गुब्बारे के समान होती है जिसे एमनीओटिक सेंक कहते हैं। इसी में एमनीओटिक द्रव भरा रहता है। बच्चा एमनीओटिक द्रव में रहता है। बच्चेदानी का मुंह एक ढक्कन की तरह बन्द होता है जो बाहर के रोग (इन्फैक्शन) को अन्दर नहीं जाने देता। इस कारण गर्भावस्था में संभोग क्रिया करते समय बच्चे को हानि नहीं होती। एमनीओटिक द्रव संभोग के समय लगने वाले झटकों को चारों ओर फैला देता हैं जिस कारण बच्चा सुरक्षित रहता है। पेट पर अधिक दबाव मां और बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। संभोग क्रिया के दौरान कभी-कभी स्तन पर दबाव, रगड़ या अधिक गर्मी के कारण बच्चे को हानि हो सकती है।

        कुछ स्त्रियां गर्भावस्था में सेक्स क्रिया पसन्द नहीं करती है तथा इसके लिए उनकी इच्छा भी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में उनके पतियों को उनकी मनोदशा को अच्छी तरह समझाना चाहिए और समय के अनुसार उनका सहयोग भी करना चाहिए।

        गर्भावस्था में संभोग क्रिया के बाद कुछ स्त्रियों को थोड़ा सा रक्त चला जाता है। स्त्रियों को लगता है ऐसी स्थिति संभोग क्रिया के कारण ही पैदा हुई है। लेकिन गर्भावस्था में माहवारी की ही तारीखों में शुरू-शुरू में हार्मोन्स की कमी के कारण रक्त जा सकता है। यह हल्के रंग का होता है लेकिन कभी-कभी रुककर रक्त का दाग भी देता है।  

इस स्थिति को स्त्री को हार्मोन्स देकर ठीक किया जा सकता है। रक्त आदि जाने पर डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। यदि इस परिस्थिति को समय के साथ संभाल लिया गया तो होने वाले बच्चे को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है।

        स्त्रियों के शरीर का रक्त गाढ़ा लाल होने के कारण हानिकारक हो सकता है जिसको गर्भपात की पहली अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में पूर्ण विश्राम और डाक्टर की राय लेना उचित होता है। यदि डाक्टर इस स्थिति को नियन्त्रण में कर लेते हैं तो रक्त भूरे रंग का होने लगता है। गाढे़ लाल रंग का रक्त गर्भावस्था ठीक न होने की सूचना देता है। यह अवस्था ओवल के बच्चेदानी से छूट जाने के कारण हो जाती है। यदि रक्त भूरे रंग का होने के बाद रुक गया हो तो ऐसी स्थिति में अधिक से अधिक विश्राम करना चाहिए। ऐसी स्थिति में संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे हानि हो सकती है।  

        संभोग क्रिया के बाद दो तरीके से बच्चेदानी सिकुड़ना शुरू होती है। एक तो संभोग के बाद स्वयं शरीर में प्रबल उत्तेजना होती है जिससे शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं। इसी के कारण बच्चेदानी भी सिकुड़ती है। दूसरा पुरुष के वीर्य में हार्मोन्स प्रैस्टागलैण्डीन होने के कारण भी बच्चेदानी में स्वयं सिकुड़न पैदा होती है।

        संभोग क्रिया के बाद स्त्रियों के स्तनों में एक प्रकार की उत्तेजना पैदा होती है। यह उत्तेजना हार्मोन्स द्वारा पैदा की जाती है जो दिमाग की पिट्यूटरी ग्रन्थि से पैदा होकर शरीर में पहुंचाई जाती है जिसको आक्सीटोसिन कहते हैं जो बच्चेदानी को संकुचित करती है। यदि बच्चा होने का समय निकट है तो यह बच्चेदानी में दर्द होना भी शुरू करा सकता है।

        यही हार्मोन्स ग्लूकोज के सहारे स्त्रियों को दिया जाता है जो प्रसव के दर्द को प्रारम्भ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि गर्भावस्था का समय पूरा न हुआ हो तो स्तनों की उत्तेजना स्त्रियों के लिए हानिकारक हो सकती है। यह हार्मोन्स बच्चा होने से पहले बच्चेदानी के मुंह को पतला और मुलायम करके बच्चा होने की स्थिति को उत्पन्न करता है।

« PreviousChapter ListNext »