तुम धरा हो माँ
पूरे सप्ताह भर की गहमागहमी के बाद आज सागर का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हो गया. रिश्तेदार, नातेदारों का जमावाड़ा अभी घर पे ही है. बरसों से संजोयी आस आज पूरी हो गई.
सरला, थकान से चूर होकर अपने कमरे मे आयी. रात्रि के एक बज गए थे, सभी रिश्तेदार का खाना पीना ख़्याल रखते रखते. सरला नहीं चाहती थी कि कोई भी कसर रह जाये. आख़िर सागर उनका एकलौता बेटा है.
कमरे मे आकर ज़रा कमर सीधी कर लूँ सोचकर लेट गयीं. कल रिसेप्शन भी है सो सुबह ही सुबह फिर से भागदौड़ शुरू हो जाएगी. सोचते सोचते सरला जी को अचानक एक मेहमान की बात याद आ गयी.
शाम को शादी की गहमागहमी के बीच अचानक ही सरला जी के कानों मे एक बात पड़ गई. सागर के फूफा जी किसी से कह रहे थे, ना जाने क्या सोचकर भाभी जी ने इस लड़की के लिए हां कहा है. मुझे तो लड़की बड़ी चालू लगती है. रिश्तेदार भी फूफा जी की हाँ में हाँ मिलाती कह रही थी कि सरला को गाँव की ही कोई साधारण लड़की को अपनी बहू चुनना चाहिए था, इन शहर की लड़कियों का क्या भरोसा है, सास की इज़्ज़त करे ना करे. साथ खड़ी उनकी बेटी भी कह रही थी हाँ मैंने तो देखा वो ज़रा भी शर्माती लजाती नहीं, बहुत एक्सट्रॉवर्ट है ये तो. तभी सरला जी को समीप आते देख वो लोग चुप हो गए थे.
सरला जी जब कमरे में अकेली हुई तो ये बातें उनको मथने लगी. उन्हें याद आने लगा कैसे कैसे जतन से अकेले उन्होनें अपने दोनों बच्चों सागर और नेहा को पाला. कम उम्र में ही पति का साथ छूट गया. उनको हृदयाघात लगा था और सरला जी का पूरा जीवन ही सूना हो गया. शुक्र था कि ज़मीन जायदाद की कमी ना थी, और उनका पेंशन भी आता रहा क्योंकि पद पर रहते हुए ही वो सबको अकेला छोड़ गए थे. लेकिन इस समाज मे अकेली कम उम्र औरत और दो बच्चों की जिम्मेदारी, किसी परीक्षा और तपस्या से कम नहीं होती. घर, खेत खलिहान, मजदूरों से काम कराना, महाजन से माथा पच्ची, बच्चों की पढ़ाई लिखाई, नाते रिश्तेदारी, जीवन के अनगिनत उतार चढ़ाव सबकुछ अकेले ही तो करना और सहना पड़ा था सरला जी को. बहुत मुश्किल से जीवन का वो दौर गुज़रा था. वक़्त बीता, बच्चे बड़े हो गए. फिर नेहा की शादी का वक़्त आया, धूमधाम से उसकी विदाई कर के सरला जी अपनी आधी बची जिम्मेदारी को पूर्ण करने का बाट जोह रही थीं. और आज उनके घर पे शहनाईयों के साथ दीपा ने कदम रखा था. दीपा को सागर ने ख़ुद ही पसंद किया है पर सरला जी को कोई आपत्ति नहीं लगी थी.
पर शाम को रिश्तेदारों की बात ने सरला के मन में कहीं हूक उठा दी. 15 बरसो से सागर को ही जीवन मान कर जीती आई थी सरला. अपने बेटे के लिए ऐसी कौन सी कुर्बानी थी जो सरला ने ना दी. तो क्या ग़लत किया जो दीपा को बहु बनाने का फ़ैसला किया. ना जाने क्यों भविष्य की किसी आशंका से उनकी आंखो के किनारे भीगने लगे कि तभी अंधेरे में ही उन्हे एहसास हुआ कि किसी ने उनकी पांव पे हाथ रखा. वो हड़बड़ा कर उठ बैठी अभी चिल्लाने ही वाली थी कि विवाह का घर जान कोई चोर ना घुस आया हो, तभी सागर ने कहा माँ मै हूँ.
सागर तू यहाँ, तुझे तो.. अभी माँ की बात पूरी भी नहीं हुई कि सागर ने कहा माँ धीरे बोलो कोई सुनेगा तो ना जाने क्या बातें बनेगी. सरला जी उद्विग्न हो उठी, सागर सब ठीक है ना बेटा. तुझे तो दीपा के पास होना चाहिए था फिर??
माँ, सब ठीक है और मै उसके साथ ही हूँ. मतलब.. मतलब माँ वो भी यहीं है ये कहकर सागर ने नाइट बल्ब ऑन कर दिया. ये क्या, दीपा सरला जी के पांव के पास खड़ी थी गुमसुम.
माँ, इतना ही निकला दीपा के मुख से, सरला जी उसे अपने पास खींच लिया. दीपा एकदम से माँ के गले लग गयी और उसके आँखो से अश्रु धारा बह निकली.
सरला जी घबरा गयीं, अरे क्या हुआ बहू किसी ने कुछ कहा क्या. नहीं माँ. फिर, क्यूँ रो रही हो. दीपा बस माँ माँ कहती रही. अरे कुछ तो बताओ बहू.
दीपा ने बहुत मुश्किल से कहा, आप बदल गए हो माँ. सरला जी हैरान रह गयी, पूछा मुझसे कोई ग़लती हो गयी क्या. दीपा ने सुबकते हुए कहा हाँ हो गई है. अगर मुझे पता होता कि सागर से शादी करने के बाद आपके मुँह से कभी अपने लिए बेटा शब्द नहीं सुनुगी तो आजीवन अविवाहित ही रह लेती मै.
सरला जी ने दीपा को सीने में और ज़ोर से भींच लिया. मेरा बेटा ऐसे नहीं रोते. ग़लती हो गयी मुझसे. तुझसे मैं साल भर से फ़ोन पे बात करती रही पर शायद तुझे पूरी तरह नहीं जान पायी थी. मेरा बेटा, तू अब मेरा बेटा ही रहेगी जीवन भर. दीपा नन्ही बच्ची की तरह माँ के आगोश में थी. सागर मुस्कुरा रहा था. थोड़ी देर में दीपा का मन शांत हुआ तो बोली माँ मुझे नहीं मालूम कि सास से ऐसे बात करनी चाहिए या नहीं, पर माँ मुझे अपने जीवन में वैसे ही रहने दो जैसे आप ने सागर और नेहा को रखा है.
माँ, सिर्फ सागर के प्यार के सहारे नहीं जी सकूँगी मुझे आप वैसे ही चाहिए जैसे अबतक मेरे साथ थी. ज़मीन से टूट कर पौधे नहीं जीवित रह सकते माँ. आप ही धरा हो. इतना कहते कहते दीपा का गला रूँध गया.
सरला जी के मन पे छाए बादल हट गए थे. वो समझ गयीं थी दीपा शहर की ज़रूर थी, माना कि गाँव की तरह का चलन, शर्माना लजाना उसने ना सीख था पर दिल और स्वभाव से बहुत सरल थी, रिश्तों में दिखावट नहीं वो प्यार की भूखी थी.
सरला बार बार यही सोच रही थी कि जो रिश्तेदार कह रहे थे वो बहुओं के बारे में था. मेरी दीपा तो बेटा है सागर और नेहा की ही तरह. सरला ने रब को मन ही मन धन्यवाद किया कि जीवन को सफल किया प्रभु आपने अब मैं दुनिया की बातों में कभी ना आऊँ और जीवन भर दीपा की भी माँ ही रहूँ, इतनी ही शक्ति दो प्रभु. तभी सागर ने माँ के कंधे पे हाथ रखा, माँ...
सरला जी कहीं दूर से लौटी जैसे. अब जाओ बेटा बहुत रात हो गई तुम दोनों भी सो जाओ थोड़ी देर.
सागर जाते जाते माँ के गले लग गया उसकी आँखे भी गीली थी. शायद इस खुशी में कि दीपा को चुनकर उसने माँ को भविष्य में कोई तकलीफ़ ना हो इस बात की नींव रखी है. जाते जाते दीपा, माँ के दोनों हाथों को चूमते हुए बोली, देखलो माँ अब बहु कहा तो झगड़ा हो जाएगा.
सरला जी हँस पड़ी. कम उम्र में जीवन की बड़ी बड़ी उलझनों को सुलझाते सुलझाते, दुनिया के लोगों से दो चार होते होते सरला जी की आँखें बहुत अनुभवी हो चुकी थीं. वो समझ गई कि दीपा ने भले ही जीवन के 28 वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन मन में उसके एक निश्छल अबोध मन अब भी है. सरला जी ने मन ही मन फैसला किया वो दीपा को सामाजिक पैमाने पर कभी नहीं तपाएँगी. सरला जी ने खिड़की से देखा, चाँद पूर्ण और साफ दिखाई दे रहा था. चाँदनी में आज उन्हें अपना घर आँगन बहुत खूबसूरत दिख रहा था जितना पहले कभी ना था. पायल की झनक को संभालती दीपा धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ़ जा रही थी कि कोई रिश्तेदार उसे इतनी रात गए यूँ बाहर ना देखले. सरला जी को याद आया बचपन पे इसी आँगन में सागर और नेहा बाक़ी बच्चों के साथ छुप्पम छुपायी खेलते वक़्त ऐसे ही धीमे धीमे चला करते थे. उन्हें लगा बच्चों का सरल मन फिर एकबार उनकी बाहों में मचलने के लिए दीपा के रूप मे चला आया है. सरला जी आनंद अतिरेक मे अश्रु के साथ मुस्करा उठीं, आज बरसों की तपस्या को प्रभु ने फलीभूत कर दिया था.
उनके कानों में दीपा के कहे शब्द बार बार टकरा रहे थे - तुम धरा हो माँ. तुम धरा हो.
कीर्ति प्रकाश