Bookstruck

दूलह राम सीय दुलही री

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

दूलह राम, सीय दुलही री ।

घन दामिनि बर बरन हरन मन ।
सुन्दरता नख सिख निबही री ॥

तुलसीदास जोरी देखत सुख ।
सोभा अतुल न जात कही री ॥

रूप रासि विरचि बिरंचि मनु ।
सिला लमनि रति काम लही री ॥

« PreviousChapter ListNext »