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धर्म की जंग ।

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उदारवादी रूप अब हाशिए पर है जा रहा, उग्र रूप अब तो हिंदुओं को भी भा रहा।
शांति के अग्रदूत यूं ही नही रुख बदल रहें, मानसिकता इन की कुछ  भेड़िये हि बदल रहें ।
नहीं थी वह वजह उस कुनबे को सवारने की, आज लग रहा है कि वह वजह थी उस कुनबे को उजाड़ने की।
क्यों देश में रखकर भी उसे देश से अलग कर दिए, बेवजह बेवहियात  ऐसे कानून क्यों उस पर मढ़ दिए ।
देश में हर जगह लोग आशियाना अपनी बनाते हैं, जन्नत जिसे कहती है दुनिया वहां जाने से भी लोग कतराते हैं।
शिक्षा काम ना कर रही उस मानसिकता को बदलाने में, आग भी ठंडी पड़ रही उस बर्फ को पिघलाने में ।
अभी भी वक्त है कि उस जन्नत में कुछ बस्तियाँ  बनवा दो, देश के कुछ नागरिक को सुरक्षित वहां वसा दो।
खत्म कर दो उस कानून को जो  देश के अंदर ही एक देश है नया बना रहा, ऊंची तालीम रखकर भी जिहादियों के संग रमा रहा।
सोचो क्या होगा जब ऐसा ही रुख इस देश का अन्य तबका अपना लिया, महाभारत से भी ज्यादा धरती लाल होगी जो हाँथ ने खंजर उठा लिया ।
रोक दो जिसके कारण उदारवादी रूख हाशिए पर अब जा रहा, अंत करो उस कारक को जो शान्तिदूत को उग्रता की ओर ले जा रहा।
रचना:- विकास विक्रम

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