Bookstruck

तहज़ीब के ख़िलाफ़ है

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

तहज़ीब के ख़िलाफ़ है जो लाये राह पर
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर

क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
यह बात मुन्हसिर[1] है तुम्हारी निगाह पर

« PreviousChapter ListNext »