Bookstruck

भाग 23

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

 


शाम को महाराज से मिलने के लिए वीरेन्द्रसिंह गये। महाराज उन्हें अपनी बगल में बैठा कर बातचीत करने लगे। इतने में हरदयालसिंह और तेजसिंह भी आ पहुंचे। महाराज ने हाल पूछा। उन्होंने अर्ज किया कि फौज मुकाबले में भेज दी गई है। लड़ाई के बारे में राय और तरकीबें होने लगीं। सब सोचते-विचारते आधी रात गुजर गई, एकाएक कई चोबदार ने आकर अर्ज किया, ‘‘महाराज, चोर-महल में से कुछ आदमी निकल भागे जिनको दुश्मन समझ पहरे वालों ने तीर छोड़े, मगर वे जख्मी होकर भी निकल गये।’’
यह खबर सुन महाराज सोच में पड़ गये। कुमार और तेजसिंह भी हैरान थे। इतने में ही महल से रोने की आवाज आने लगी। सभी का खयाल उस रोने पर चला गया। पल में रोने और चिल्लाने की आवाज बढ़ने लगी, यहाँ तक कि तमाम महल में हाहाकार मच गया। महाराज और कुमार वगैरह सभी के मुंह पर उदासी छा गई। उसी समय लौंडियां दौड़ती हुई आईं और रोते-रोते बड़ी मुश्किल से बोलीं, ‘‘चन्द्रकान्ता और चपला का सिर काटकर कोई ले गया।’’ यह खबर तीर के समान सभी को छेद गई। महाराज तो एकाएक हाय कह के गिर ही पड़े, कुमार की भी अजब हालत हो गई, चेहरे पर मुर्दनी छा गई। हरदयालसिंह की आंखों से आंसू जारी हो गये, तेजसिंह काठ की मूरत बन गये। महाराज ने अपने को संभाला और कुमार की अजब हालत देख गले लगा लिया, इसके बाद रोते हुए कुमार का हाथ पकड़े महल में दौड़े चले गये। देखा कि हाहाकार मचा हुआ है, महारानी चन्द्रकान्ता की लाश पर पछाड़ें खा रही हैं, सिर फट गया, खून जारी है। महाराज भी जाकर उसी लाश पर गिर पड़े। कुमार में तो इतनी भी ताकत न रही कि अन्दर जाते। दरवाजे पर ही गिर पड़े, दांत बैठ गया चेहरा जर्द और मुर्दे की-सी सूरत हो गई।
चन्द्रकान्ता और चपला की लाशें पड़ी थीं, सिर नहीं थे, कमरे में चारों तरफ खून-ही-खून दिखाई देता था। सभी की अजब हालत थी, महारानी रो-रोकर कहती थीं, ‘‘हाय बेटी ! तू कहाँ गई ! उसका कैसा कलेजा था जिसने तेरे गले पर छुरी चलाई ! हाय हाय, अब मैं जी-कर क्या करूंगी ! तेरे ही वास्ते इतना बखेड़ा हुआ और तू ही न रही तो अब यह राज्य क्या हो ?’’ महाराज कहते थे- ‘‘अब क्रूर की छाती ठण्डी हुई, शिवदत्त को मुराद मिल गई। कह दो, अब आवे विजयगढ़ का राज्य करे, हम तो लड़की का साथ देंगे।’’ 
एकाएक महाराज की निगाह दरवाजे पर गई। देखा वीरेन्द्रसिंह पड़े हुए हैं, सिर से खून जारी है। दौड़े और कुमार के पास आये, देखा तो बदन में दम नहीं, नब्ज का पता नहीं, नाक पर हाथ रक्खा तो सांस ठण्डी चल रही है। अब तो और भी जोर से महाराज चिल्ला उठे, बोले, ‘‘गजब हो गया ! हमारे चलते नौगढ़ का राज्य भी गारत हुआ। हम तो समझे थे कि वीरेन्द्रसिंह को राज्य दे जंगल में चले जायेंगे, मगर हाय ! विधाता को यह भी अच्छा न लगा ! अरे कोई जाओ, जल्दी तेजसिंह को लिवा लाओ, कुमार को देखें ! हाय हाय ! अब तो इसी मकान में मुझको भी मरना पड़ा। मैं समझता हूँ राजा सुरेन्द्रसिंह की जान भी इसी मकान में जायेगी ! हाय, अभी क्या सोच रहे थे, क्या हो गया ! विधाता तूने क्या किया ?’’
इतने में तेजसिंह आये। देखा कि वीरेन्द्रसिंह पड़े हैं और महाराज उनके ऊपर हाथ रखें रो रहे हैं। तेजसिंह की जो कुछ जान बची थी वह भी निकल गई। वीरेन्द्रसिंह की लाश के पास बैठ गये और जोर से बोले, ‘‘कुमार, मेरा जी तो रोने को भी नहीं चाहता क्योंकि मुझको अब इस दुनिया में नहीं रहना है, मैं तो खुशी-खुशी तुम्हारा साथ दूंगा !’’ यह कह कर कमर से खंजर निकाला और पेट में मारना ही चाहते थे कि दीवार फांदकर एक आदमी ने आकर हाथ पकड़ लिया।
तेजसिंह ने उस आदमी को देखा जो सिर से पैर तक सिन्दूर से रंगा हुआ था उसने कहा-
‘‘काहे को देते हो जान, मेरी बात सुनो दे कान
यह सब खेल ठगी को मान, लाश देखकर लो पहचान
उठो देखो भालो, खोजो खोज निकालो’’
यह कह वह दांत दिखलाता उछलता-कूदता भाग गया।

 

 

 

 

« PreviousChapter ListNext »