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विमल अधर , निकटिं मोह पाप...

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अंक पहिला - प्रवेश पहिला - पद ९

विमल अधर, निकटिं मोह पापी ! वदन-सुमन- गंध लोपी ॥ध्रृ०॥

धवला जोत्स्ना राहुसि अर्पी सुखद सुधाकर, विमल अधर ॥१॥


राग हमीर, ताल एक्का.

("तेंडेरे कारन " या चालीवर.)

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