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ने पितरां खर -नरकीं ही मद...

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अंक पहिला - प्रवेश पहिला - पद १०

ने पितरां खर-नरकीं ही मदिरा । कच कैसा सेवि खदिरा ॥धृ०॥

जरि धरि शिरीं तव आज्ञेला । परि मानिना कच उन्मादाला ॥१॥

रविकर जरि नभीं लपविला । परि होताचि तो वैरि तिमिरा ॥२॥


राग बिहाग, ताल त्रिवट.

("बालमरे मोरे" या चालीवर.)

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