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मधुकर वनवन फिरत करी गुंजा...

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अंक दुसरा - प्रवेश पांचवा - पद ३१

मधुकर वनवन फिरत करी गुंजारवाला, भोगि पुष्पमाला;

अभिनव कुसुम मधुपा सहज सुचविति नूतन शृंगाराला ॥ध्रु०॥

भ्रमर सुरस वनिं दिसला कमला टाकुनि; कच अदय भयद झाला;

कोमजलें सुमनदल, दुखवि मजला ॥१॥


राग देस सोरट; ताल एक्का.

("पियाकरधर देखो धरकत है मोरि छतिया," या चालीवर.)

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