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लांछन दया ही होई खलहातें ...

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अंक दुसरा - प्रवेश पांचवा - पद ३५

लांछन दया ही होई खलहातें ॥ध्रु०॥

नच दया येवो, जीवहि जावो, अर्पि काजा कच देहातें ॥१॥


राग सोहा; ताल त्रिवट.

("कानन सुनिये" या चालीवर.)

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