Bookstruck

उग्रमुख बहु बिकट धर्म ; म...

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

अंक पहिला - प्रवेश तिसरा - पद १७

उग्रमुख बहु बिकट धर्म; मन कापे; परि समाचरितांचि प्रेमात लोपे ॥ध्रु०॥

कंसा वधीले, परि लोभ नच त्यात; घाली स्वसुख-त्याग स्नेहा सुजतान ॥१॥

(राग- परज, ताल- झपताल. 'नाद गडगड सुगड' या चालीव.र)

« PreviousChapter ListNext »