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साहस-मति, भय अति; बहु विग...

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अंक चवथा - प्रवेश दुसरा - पद ५३

साहस-मति, भय अति; बहु विगलित गात्री नसे उचित शक्ति;

नच वपु-बल मम, नच मम विमल भक्ति ॥ध्रु०॥

न करि पाप, न धरि शाप; ही मनासि सुखद शांति;

तरुण नसे, भयद दिसे अखिल क्रांति ॥१॥

(राग - जीवनपुरी, ताल - एकताला. 'दीम दारा दिर दिर' या चालीवर.)

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