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पुरुषशक्ति जोडावी ; खरी भ...

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अंक चवथा - प्रवेश दुसरा - पद ५७

पुरुषशक्ति जोडावी; खरी भक्ति-बहुजन-संगोपन-मनबुद्धि-

सकला अजि द्यावी ॥ध्रु०॥

विश्वसखा हा कृष्ण छत्र मम,

कीर्ति तव महिवरि पसरावी; - पतिता ही उद्धारि थोरवी ॥१॥

(राग - वसंत, ताल - त्रिवट. 'जपिय नाम जाकोजी' या चालीवर.)

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