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निजरूपी जगदाकृतिभासा कारण...

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रान कानडा - ताल त्रिवट


निजरूपी जगदाकृतिभासा कारण होउनि करित विलासा ॥धृ०॥
वस्तुस किरणे छाया ये परी ।
दोहिंस कारण तो रवि जैसा ।निज० ॥१॥
भिन्नाकृति जरि कुंडलवलयी ।
कनकगुणचि दिसतो भरलासा ।निज०॥२॥
निखिल निरंजन निस्तुल तो प्रभु । व्यापक झाला व्याप्यहि तैसा ।निज० ॥३॥

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