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भाग्यहीन भामिनी खरी । न...

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ताल धुमाळी

भाग्यहीन भामिनी खरी ।

नवरदेव परि मणि न मलिनही शिरीं ॥ध्रु०॥

नकार धनासि भिकार जणु धरी,

हिरा नच दिसत न वा कनककण न वा रजतलवही;

मलिना अधना कोण वरी । याचनेसि जणु येत धरनारी ॥१॥

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