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रण गगनसदनसम अमरा । शरचपला...

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राग धानी ताल त्रिवट.

रण गगनसदनसम अमरा । शरचपला चमकत,

रणरत नर प्रियकर जलधर समजत जल रुधिरा ॥ध्रु०॥

देववदन दिसत सतत समरीं; धरी सुरगण विजया निज करीं;

पुण्ययोग समर खचित बहु सुलभ नरा ॥१॥

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