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कनकरत हिरा अंगना भजती देव...

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राग खमाज, ताल त्रिताल.

कनकरत हिरा अंगना भजती देवाहुनी, प्रिय नखरा।

अलंकारचि बहु सुखद खरा ॥ध्रु०॥

नटुनियां स्त्रिया गमती जणु पेटी गतियुत रत्‍नधरा ।

साजे, मग समजा, बहु धन तें तिज नवरा ॥१॥

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