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लोळणचि भूमिवरि मोक्ष वाटे...

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ताल झपताल

लोळणचि भूमिवरि मोक्ष वाटे मना ॥धृ०॥

देह होई उलट पलट, मग कालसम उच्चनीय अवयव विसळत क्षणा क्षणा,

लोळणा अनुसरत भूभ्रमण, गोलगति पाळणा, शयनसुख सहज देई जना ॥२॥

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